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________________ इस विशेषांक ने उस महामुनि के बहुत सुन्दर दर्शनों की एक ऐसी प्रबल आकांक्षा प्रस्फुटित कर दी है कि जिसे शायद पुण्य विशेषांक बहुत सुन्दर निकला है-हर लेख पढ गया । तुम्हारे दोनों लेख पढ़कर मन ही झेल सकता है। विभोर हो गया।-वीरेन्द्रकुमार जैन, बम्बई -राजकुमारी बेगानी, कलकत्ता उच्चकोटि का, नयनाभिराम परियोजना प्रशंसनीय प्रस्तुत विशेषांक नयनाभिराम तो है विशेषांक में श्री नैनागिरि तीर्थ एवं ही, उसका मसाला भी उच्च कोटि का और आचार्य विद्यासागरजी के विषय में सार पठनीय है। संपादकीय शैली तो कमाल की गभित सामग्री दी है। आपकी विशेषांकों है जो कहीं भी अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। की परियोजना अत्यन्त ही प्रशंसनीय है। महावीरप्रसाद द्विवेदी और वियोगी हरि वैसे यह आपके परिश्रम का साफल्य उदा शैली की भाँति एक और शैली उदय में हरण है। -श्रेयांस प्रसाद जैन, बम्बई आयी है, जो डा. नेमीचन्द शैली के नाम से स्तर के अनुरूप शोहरत पायेगी। 'सरल'जी का 'संप्रदाय' . पूर्व विशेषांकों की तरह यह भी पत्रिका (व्यंग लेख) अद्भत है । नरेन्द्र प्रकाशजी के स्तर के अनुरूप ही है। संपादकीय, भी लाजवाब हैं। वे एक कवि भी हैं, मालूम पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, डा.देवेन्द्रकुमार न था । अनेक भावपूर्ण मुद्राओं में आचार्यश्री शास्त्री के लेख साधु के आचार पर विचार के चित्र विशेषांक में चार चांद लगा रहे करने को आमंत्रित करते हैं। डॉ. राजाराम हैं । उनकी बालावस्था का चित्र प्राप्त जैन का जैनविद्या-विषयक शोधपूर्ण धारा करके पत्रकारिता को सार्थक बना दिया वाही लेख अत्यन्त सराहनीय है । पृ. ८९, गया है । डा. राजाराम जैन की 'जैन विद्या : पंक्ति २० में 'पावा-निर्णय' की जगह विकास-क्रम | कल, आज' एक ऐसी सिरीज 'पावा-समीक्षा होनी चाहिये। है, जो साहित्यशोधी के लिए अनमोल है । एक विशेषांक एक्सपर्ट के रूप में आपका __-कन्हैयालाल सरावगी, छपरा अभिवादन करता हुआ आपको बधाई सामग्री से भरपूर देता हूँ। -प्रतापचन्द्र जैन, आगरा व्यक्तियों के नाम विशेषांक का प्रका लाजवाब शन आपकी एक विशेषता हो गयी है। विशेष विशेषांक छोटा होते हुए भी नयनाव्यक्ति के परिचय देने में आपकी कुशलता भिराम, स्तरीय और उपयोगी है। सामग्री तो प्रकट होती ही है और इसमें नित्यनूतन अथ से इति तक पढ़ने योग्य है। आप रहते हैं, यह स्पष्ट है । अंक आपकी मोक्ष-तत्त्व पर आचार्यश्री का प्रवचन प्रणाली के अनुसार बहुत अच्छा और पठन हृदयग्राही है। उनके अन्य प्रवचनों का भी सामग्री से भरपूर है। यदि केस्सेट से आलेखन-संपादन कराया -दलसुख मालवनिया, अहमदाबाद जा सके तथा तीर्थंकर' के आगामी अंकों में एक सुझाव समय-समय पर उनका प्रकाशन होता रहे, विशेषांक पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। तो जैन-जगत् में इसका भारी स्वागत होगा। जैसा कि मैंने पहले भी सुझाव दिया था; आपके इण्टरव्य से दिव्यध्वनि के सम्बन्ध पुनः आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहती में एक नयी दृष्टि, नयी अनुभूति मिली है। हूँ कि कृपया तीर्थंकर' में आचार्यश्री विद्या- अंक में और भी बहुत-कुछ नया है । अंक सागरजी के समाचार अवश्य छा। आचार्यश्री की तरह ही लाजवाब है । -श्रीमती हीरामणि छाबड़ा, कलकत्ता बधाई ! -नरेन्द्र प्रकाश जैन, फीरोजाबाद तीर्थंकर : जन. फर. ७९/५८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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