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रमारानी जैन शोध संस्थान, साहू शान्तिप्रसाद जैन भवन आदि संस्थाओं का निर्माण किया है। इन कार्यों की सफलता के लिए उन्होंने अपने गौरवशाली ऐतिहासिक जैनमठ (मूडबिद्रीं) की सारी शक्ति लगा देने का निश्चय किया है। मुझे विश्वास है कि पूज्य भट्टारकजी शोध-संगठन, संस्था-संचालन तथा विद्वानों को प्रेरित-आकर्षित करने सम्बन्धी अपनी अचिन्त्य क्षमता-शक्ति से जैनविद्या को योग्य दिशा प्रदान कर उसके आलोक से विश्व-विद्या-जगत् को प्रकाशित करेंगे। आपकी अनेक शोध-कृतियों एवं शोध-निबन्ध प्रकाशित हैं तथा विश्वास है कि आगे भी वे द्विगुणित शक्ति से शोधकार्यरत रहेंगे। महिलाओं के क्षेत्र में
. जैन विदुषी महिलाओं में ब्रह्म. चन्दाबाईजी, आरा; म. मगनबाई जी, बम्बई; प. सुमतिबाई शहा, शोलापुर ; ब्रजबालाजी; पं. विद्युल्लता शाह आदि के नाम विशेष रूपेण उल्लेखनीय हैं। जैन महिला-समाज में जागृति लाने के लिए उन्होंने क्या-क्या त्याग नहीं किया? श्री जैन बाला-विश्राम, आरा; जैन महिलाश्रम, बम्बई; एवं श्राविकाश्रम, शोलापुर जैन समाज की ऐसी महिला विद्यापीठे हैं, जिनमें एक ओर जैन विदुषियाँ लगातार तैयार होती रहीं, जिन्होंने देश के कोने-कोने में जैन महिलाओं में शिक्षा का प्रचार किया, और दूसरी ओर जैन महिला दर्श एवं सन्मति जैसी पत्रिकाएँ निकाल कर तथा जैन महिला-परिषद् की स्थापना कर नारी-जागरण के लिए अखण्ड शंखनाद किया। जैन इतिहास में इन महिलाओं के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे। शंका-समाधान के क्षेत्र में
जैन समाज में अनेक ऐसे विद्वान हैं, जिन्होंने स्वाध्याय-प्रेमियों द्वारा उठायी गयी शंकाओं के समाधान तथा शास्त्र-सभाओं के माध्यम से जैनधर्म-दर्शन का ठोस प्रचार किया है। ऐसे महाविद्वानों में श्रद्धेय पं. बंसीधरजी, पं. खूबचन्द्रजी, पं. रतनचन्द्रजी मुख्तार, पं. रतनलाल कटारिया, पं. माणिकचंद्रजी, पं. फूलचन्द्रजी शास्त्री, पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, पं. अजितकुमारजी शास्त्री, पं. दयाचन्द्रजी शास्त्री ने शंका-समाधानों के माध्यम से आगमोल्लिखित अनेक तथ्यों का रहस्योद्घाटन किया है। यह शंका-समाधान, प्रचलित साप्ताहिक या मासिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। क्या ही अच्छा हो कि उनका विषयवार संग्रह करके उन्हें ग्रंथाकार प्रकाशित किया जाए। शास्त्रार्थ के क्षेत्र में
एक समय था, जब वैदिक विद्वानों ने जैन-साहित्य में वर्णित सर्वज्ञतावाद, अनेकान्तवाद तथा अवतारवाद के विरोधी सिद्धान्तों का पूरजोर खण्डन कर जैन विद्वानों के पाण्डित्य को चुनौतियाँ दी थीं; किन्तु विद्वानों ने इस क्षेत्र में भी उनकी चनौतियों को स्वीकार कर अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया। इस दिशा में पं. गोपालदासजी बरैया, पं. मक्खनलालजी शास्त्री, पं. अजितकुमारजी शास्त्री, (मुल्तान), पं. राजेन्द्रकुमारजी (कासगंज), पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री तथा पं. लालबहादुरजी शास्त्री के नाम प्रमुख हैं।
(क्रमशः)
थंकर : जन. फर. ७९/५०
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