SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'असन्तोष' से ब्याज ऋण पर 'हर्ष' लिया जाता है, हँसने की बाधाओं से, संघर्ष किया जाता है, पूजा के सरसिज, काँटों के पहरों में खिलते हैं, मंजिल वहीं छिपी मिलती है, पाँव जहाँ छिलते हैं, दुख ही सुख देकर जाता है, दुख से क्यों घबरायें। हँसते-हँसते जीने की सीखें कमनीय कलाएँ ।। नयी समस्याओं को, हमसे मिलता जो पोषण है, कितनों ने पहिचाना, उसमें अपना ही शोषण है, कभी-कभी तो एक 'ढील', जीवन-भर पछताती है, नन्हीं 'सिलवट' पड़ने से, तस्वीर 'दरक' जाती है, हमें न हँसने देती हैं अपनी ही अस्थिरताएँ। हँसते-हँसते जीने की सीखें कमनीय कलाएँ। त्याग-वृत्ति को संग्रह की, 'कुटनी' ने बहकाया है, वही अधिक रोता है, जिसने बहुत अधिक पाया है, धन का बाह्य रूप, फूलों पर चमकीली शबनम है, इसके अन्दर झाँको तो, पत्थर भारी-भरकम है, इसमें गभित हरणवाद छीना-झपटी, छलनाएँ। हँसने और हँसाने की सीखें कमनीय कलाएँ।। अस्थिरता के रंग-मंच पर, क्या टिकने वाला है, अगर विचारें तो यह, पार्थिव देह धर्मशाला है, तर्कों के पिंजरे से, मन-पंछी आजाद करायें, हर्षोल्लास जहाँ बिखरा हो, अपने घर ले आयें, जो हँसने से रोकें, तोड़ें ऐसी परम्पराएँ। हँसने और हँसाने की, सीखें कमनीय कलाएँ ।। 00 तीर्थकर : जन. फर. ७९/४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy