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जो हँसने से रोकें,
तोडें ऐसी परम्पराएँ
कल्याण कुमार 'शशि'
हर्ष - नीर से सींचें तो, जीवन-प्रसून खिलता है, ढूंढें तो फुटपाथों पर भी, नवजीवन मिलता है, प्रश्नों में सिमटा जीवन, अपने को उलझाता है, यह मन की खेती पर, टिड्डी दल सा छा जाता है,
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इतिहासों में भरी पड़ी, ऐसी असंख्य आख्याएँ । हँसते-हँसते जीने की, सीखें कमनीय कलाएँ ।
पेड़ तले जा बैठा, हिम्मत हारा हुआ बटोही, मानतुंग पर जा पहुँचा, श्रम-संकल्पी - आरोही, बिना थके चलने वाला, पाता मनवाञ्छित पद है, केवल भाग्य भरोसे जीना, घोर विवादास्पद है,
चरम लक्ष्य तक पहुँचायेंगी, अपनी ही क्षमताएँ । हँसते-हँसते जीने की, सीखें कमनीय कलाएँ ।
तीर्थंकर : जन. फर. ७९/४१
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