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अमित, ऐसा नहीं है कि मानव की मृत्यु के प्रति यह बेहोशी टूटती न हो। तुम तो प्राचीन धर्मों के जानकार हो। तुम्हें पता है कि भगवान बुद्ध की बेहोशी इसी मृत्यु की घटना को देखकर ही टूटी थी। उन्होंने रास्ते में पहली बार किसी वृद्ध की मृत्यु देखी और सारथी से कहा कि अब उत्सव में नहीं जाना मुझे। घर वापिस चलो। उसी क्षण से बुद्ध ने ऐसी मृत्यु का वरण करने का प्रयत्न किया जो हँसते-हँसते गुजर जाए। उन्होंने समझ लिया कि जन्म और मृत्यु जीवन के दो पग हैं; उन्हें बराबर का आदर देना होगा। जब जन्म में उत्सव हो सकता है तो मृत्यु क्यों उल्लासपूर्वक वरण नहीं की जा सकती ? बुद्ध ने इसे अपने जीवन द्वारा मत्य कर दिखाया। उनके निर्वाण के समय की मुद्रा कितनी प्रफुल्ल और शान्त है ! !
तुम्हारे देश में भगवान् महावीर को तो लोग जानते ही होंगे। पहले न जाना होगा तो उनकी इस पच्चीस सौवीं निर्वाण-शताब्दी पर तो उनका नाम वहाँ पहुँच ही गया होगा। इस महापुरुष ने जीवन और मृत्यु के सम्बन्ध में अद्भुत चिन्तन प्रस्तुत किया है। इसे मृत्यु को समझने के लिए किसी घटना की आवश्यकता नहीं हुई। महावीर का कहना है कि जन्म लिया है, तो यही पर्याप्त है मृत्यु की अनिवार्यता के लिए । मेहमान आया है तो जाएगा ही । आने की अनिवार्यता से ही वह मेहमान कहलाता है। और जो अनिवार्य है उसके घटने में दुःख कैसा ? भय किसलिए? अतः दुःख और भय का मृत्यु के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। व्यक्ति के साथ यह घटना तो हजारों बार घटी है। उसे स्मरण नहीं है, होश नहीं है, इसी कारण उसके लिए मृत्यु भयावह है। दुखदायी है। व्यक्ति के साथ कितनी मृत्यु-घटनाएं घट चुकी हैं उन्हीं को स्मरण दिलाने का कार्य ही महावीर ने किया है।
तुम्हें याद होगा, जब तुम यहीं भारत में थे, एक बार मैंने तुमसे आगरे का ताजमहल देखने के लिए बहुत आग्रह किया था । सारे खर्चे का इन्तजाम भी कर दिया था; किन्तु तुम माउण्टआबू जाने पर तुले हुए थे। जब मैंने बहुत जिद की ताजमहल देख आने की, तो तुम्हें याद होगा, तुमने अपनी कॉपी में हिसाब जोड़कर मुझे बताया था कि तुम्हारा बचपन ही आगरा में कटा है और तुम पाँच सौ अस्सी बार ताजमहल देख चुके हो; किन्तु माउण्टआबू देखने पहली बार जा रहे हो। मुझे इस हिसाव के आगे हारना पड़ा था।
आज जब उस घटना को सोचता हूँ तो महावीर के चिन्तन की गहराई समझ में आती है। वे यही तो कहते थे कि व्यक्ति मृत्यु के समय इतना होश रखे कि उसे अगले जन्म में इस जन्म के सब सुख-दुःख याद रह जाएँ। कोई यदि थोड़ा अभ्यास और करे तो उसे पिछले कई जन्मों की घटनाएँ याद आ सकती हैं। और यदि एक बार होश में किसी व्यक्ति को इस संसार के सभी अनुभव स्मरण हो जाएं तो इन्द्रिय-सुख भोगने की उसकी आकांक्षा ही समाप्त हो जाएगी । उसे
तीर्थकर : जन. फर. ७९/३४
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