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________________ अपने पर भी हँसें कभी 0 हम अपने पर कभी नहीं हँसते बल्कि कोई हम पर हँसे तो बुरा लगता है। हम अपने पर इसलिए नहीं हँसते कि हम भूल को स्वीकार करने में कतराते हैं। । वस्तुतः जो भूल करने से डरता है, वह हँस नहीं सकता। भूल करता है और उसे स्वीकार करता है, वहीं जोना जानता है। जमनालाल जैन चिकित्सा-शास्त्री और बेफिक्र लोग कहते हैं कि जीवन को तरोताजा स्वस्थ एवं हलका रखने के लिए हँसना जरूरी है। हँसने से फेफड़े मजबूत होते हैं दिल की कली-कली खिल जाती है। जो हँसी उम्र बढ़ा दे, उसे कौन नहीं चाहेगा ? हँसी के सब भूखे हैं। मेरे पास, आपके पास, सबके पास इतना कुछ है कि गिनती करना मुश्किल ; पर अगर नहीं है तो एक हँसी नहीं है। हँसी क्या इतनी कीमती चीज है कि हम उसे खरीद नहीं सकते, कोई हमें दान नहीं कर सकता या उधार भी नहीं मिल सकती ? अगर कहीं हँसी का बाज़ार लगे और वह नोटों के मोल मिल सके तो सच मानिये; बेचने वाला आननफानन मालामाल हो जाएगा और खरीदने वाला निहाल ! पर हाय, न उसका बाज़ार है, न वह मंदिर में मिलती है। जब देखो तब लोग हमें हँसते रहने का उपदेश देते हैं। बैठे-बैठे हम कैसे हँसें ? खा रहे हैं, पी रहे हैं, चल रहे हैं, बतिया रहे हैं, बाजार-हाट करते हैं, बाल-बच्चे पैदा करते हैं, घर बनाते हैं, घर बसाते हैं, धन तिजोरी में जमा करते हैं-पर हँसी छूटती ही नहीं। अपने-आप अपने में कोई हंसता हुआ हमने तो नहीं देखा। हाँ, कभी कोई घटना याद आ गयी और मूर्खतापूर्ण घटना याद आ गयी तो स्मति की दुनिया में जाकर मुस्करा-भर देते हैं। ऐसे मौकों पर हम आप सभी मस्कराते हैं; लेकिन यह तो हँसी नहीं है और इसे हँसते-हँसते जीना भी नहीं कहते। हाँ; ऐसी हँसी सभी हँसते हैं जो रोके नहीं रुकती : हजारो बार इस हँसी का अनुभव हम करते हैं। किसी का कुछ नुकमान हो गया किसी की मूर्खता तीर्थकर : जन: फर. ७९/३१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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