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प्रश्न करने लगा तो झुंझलाकर कह डाला-'जा तुझे यम को दान किया है। सुनते ही नचिकेता उठा और सीधा यम के घर पहुँचा। यम उस समय घर पर नहीं थे, अत: वह उनके दरवाजे पर बैठा प्रतीक्षा करता रहा। तीन दिन बाद यम घर लौटे। देखा-भूखा-प्यासा नचिकेता द्वार पर बैठा प्रतीक्षा कर रहा है। यम ने अतिथि की अवहेलना के प्रति पश्चात्ताप करते हुए उसे जल, आमन आदि देकर संतुष्ट किया; और तीन वर माँगने को कहा। नचिकेता ने प्रथम वर में मांगा'मेरे पिता मेरे लिए उत्कण्ठित न बनें और न ही मेरे प्रति क्रोध रखें और जब मैं यमलोक से लौटूं तब मुझे पहचान सकें एवं पूर्ववत ही प्रीतिवान रहें। यम ने कहा'ऐसा ही होगा'। दूसरे वर में उसने उस अग्निविद्या की याचना की जिससे वह स्वर्ग प्राप्त कर सके, यम ने उसे अग्नि-विद्या भी प्रदान की जिसे नचिकेता ने तत्क्षण ही अधिकृत कर लिया। प्रसन्न होकर यम ने नचिकेता से कहा-'तीन वर तो तुम माँग ही रहे हो चौथा मैं तुम्हें स्वयं देता हूँ कि आज से यह अग्नि तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगी। साथ ही उसे एक शब्दमय माला भी अर्पित की जिससे वह कर्मविज्ञान का परिज्ञाता बन सके। जब यम ने तृतीय वर माँगने को कहा तो नचिकेता बोला--'मृत्यु के पश्चात् कोई कहता है आत्मा है, कोई कहता है नहीं; अतः मैं आत्मा के अस्तित्व एवं अनस्तित्व के विषय में जानना चाहता हूँ। यम ने कहा-'आत्मतत्त्व बहुत सूक्ष्म है यह सहजता से ज्ञात नहीं होता; एतदर्थ तुम दूसरा वर माँगो'। परन्तु नचिकेता उसी पर अड़ा रहा। कहने लगा-'जिसे आप कठिन बता रहे हैं उसे दूसरा तो बता ही कैसे सकता है, अत: मुझे तो आपको ही बताना होगा; फिर अन्य कुछ मुझे चाहिये भी नहीं। मुझे तो चाहिये मात्र आत्मज्ञान ।' यम ने बहुत समझाया। धन, वैभव, साम्राज्य, सुन्दरियाँ बहुत कुछ देना चाहा-दीर्घायु तक बनाने का प्रलोभन दिया--पर नचिकेता उसी बात पर अड़ा रहा-'मुझे चाहिये मात्र आत्मज्ञान'। उसने प्रेय छोड़ श्रेय चाहा था, अतः यम को विवश होकर आत्मज्ञान देना पड़ा । वह ज्ञान क्या था
न जायते मियते वा विपश्चिन्
नायं कुटश्चिन्न बभूव कश्चित् । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो ___ न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं
हतस्वन्मन्यते हतम् । उमौ तौ न विजानीतो
___ नायं हन्ति न हन्यते ॥ (१/२/१८-१९) कठोपनिषद् के ये दो श्लोक इसी प्रकार गीता (अध्याय २, श्लोक १९-२०) में लिये गये हैं । भगवान् कृष्ण अर्जुन को आत्मा का स्वरूप बताते हुए कहते हैं-'अर्जुन ! न
तीर्थंकर : जन. फर. ७९/२९
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