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केवल बहते पसीने में ही देखने मिला है । पसीना फैक्टरी मालिक का हो, दुकानदार का हो, नौकरी करने वाले का हो या मजदूर का; हो पसीना मेहनत-मसक्कत से बहा हुआ पसीना-फिर देखिये, आपका सूत्र हँसते-हँसते जियो' और महावीर का सूत्र 'जियो और जीने दो' एक साथ व्यवहृत हो जाते हैं।
परन्तु . पसीना बहाकर भोजन करने वाले हैं कितने ? एक विशेषता यह भी देखने मिली कि जो सचमुच बहाते हैं, उन्हें आँसू भी बहाने पड़ते हैं । मगर जो आँसू के अर्थ को नहीं जानते, वे पसीने की परिभाषा क्या समझेंगे, वे महावीर का सूत्र कैसे उतारेंगे जीवन में ? इससे बड़ी बात यह है कि ऐसे लोग-पसीना, आँसू, सूत्र-न समझने वाले आधुनिक सफेदपोश-एक विचित्र हँसी जीते हैं, हँसते हैं, इनकी हँसी तब जाने क्यों हँसी नहीं लगती; सभी अट्टहास और ठहाके बेसार और कृत्रिम लगते हैं; किसी अदृश्य स्वार्थसिद्धि के सूचक लगते हैं ।
जिन्हें 'हँसी' देखना हो, हँसते-हँसते जीने का अर्थ जानना हो, वे उस तरफ देखें, जहाँ-बिस्तर-पेटी ढोने के बाद कुली एक रुपये को प्राप्त कर मुस्कराता है । जहाँ-मंदिर के परिसर में कार्य कर रहा मजदूर अचानक वेदी पर स्थापित प्रतिमाजी के सामने फर्श पर झाडू देने का आदेश पाकर खुश होता है। जी हाँ-कोई गूजर एलुम्युनियम के पुराने-तुचके कटोरे में काँपते हाथों से दाल-भात लाता है और चांदनपुर के बाबा के समक्ष रखकर मुग्ध होता है; जहाँ-अभाव-पीड़ित जन-समुदाय भूख को उपवास में बदल कर निढाल होता है; जहाँ · · · । यही तो है हँसते-हँसते जीने का उपक्रम ।
हँसते-हँसते जीने का दूसरा दौर कठिन है । मैं उसे जीने के लिए बहुत दिनों तक बेचैन रहा हूँ। बहुत दिनों तक यानी कई जन्मों तक । और मैं यानी आत्मा । इस बीच कभी जीवन मिला तो हास्य न मिला, जब हास्य मिला तो जीवन इतना विरक्त हो चुका था कि हँसी न आयी। सच, आत्मा से जब हास्य पर भी हँसी न प्रकट हुई संताप में भी अश्रु न बहे तब कहीं दूर से आवाजें आयीं 'यह है हँसते-हँसते जीना' । आवाजें आतीजाती रहीं, जीवन हँसता रहा । व्यक्ति का 'मैं' आत्मा में कहीं भीतर-स्थापित होता रहा। वातानुकूलित भवन, कारें, गोदाम, दुकानें, कारखाने सब कुछ बाहर रह गये और 'मैं' आत्मस्थ हो गया। भीतर । अपने ही भीतर। 'मैं' बन गया परमहंस, बन गया वीतराग, एक हँसता हुआ जीवन ।
· · · पर छोड़ो इसे, लोग कहेंगे दर्शन बघारता है; फिर भी यह कहना चाहता हूँ कि हँसते-हँसते जीने के लिए मात्र हँसते रहना है, अपने ही ऊपर ; जीवनान्त तक ।
आपका–सुरेश
तीर्थंकर : जन. फर. ७९/२७
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