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ललित व्यंग्य
हँसते-हँसते जियो : कब तक ? 00 मेरी बात को यदि आप बच्चों की बात कहकर न टालें तो आप स्वतः अनुमान सकेंगे कि जो श्रावक प्रतिदिन एक घंटा मूर्ति के सामने बैठता है, वही आठ घंटे तिजोरी के सामने अथक जमा रहता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे प्रिय श्रावक का जीवन और जीवन का हँसते-हँसते कहाँ है, मंदिर में या तिजोरी में ?
- 'सुरेश सरल' मान्य संपादकजी,
लेखक के भीतर एक व्यापक आकाश होता है जहाँ वह उड़ानों की पेंगें भरता रहता है । यह आकाश-कोरा आकाश-शून्य नहीं होता है, वरन् उसमें सूर्य, चन्द्र, तारे और बादल भी होते हैं--शब्द, भाव, उद्देश्य और उपयोगिता; या अभाव, क्लेश, ईर्ष्या और औपचारिकता। ‘सो लेखन से पहले होने वाले चिंतन को ओढ़ता हूँ, ओढ़ने का प्रयास करता हूँ, तब जाकर किसी अदृश्य गवाक्ष से कुछ चमकता-सा नजर आता है कि जो क्षण हँसते-हँसते न जिये जा सकें उन पर हँसते-हँसते लिखा तो जा सकता है, या यों कहा जाए कि हँसते-हँसते न जी पाऊँ तो हँसते-हँसते कुछ लिखता ही चलूँ ।
अंग्रेजी लोकोक्ति है-'सबसे सुन्दर हास्य उसी का है जो अन्त तक हँसता रहे। हास्य के क्षणों के लिए श्री व्यूमार्काई सोचते थे-'मैं हर वस्तु पर हँसने की शीघ्रता इसलिए करता हूँ कि कहीं मुझे रोना न पड़े। हास्य की आकांक्षा विलकाक्स को भी थी, वे कहते हैं-'तुम हँसोगे तो संसार हँस पड़ेगा, किन्तु रोते समय तुम्हें अकेले ही रोना पड़ेगा, क्योंकि यह मर्त्यलोक केवल हास्य का इच्छुक है, रुदन तो इसके पास स्वयं अपना ही पर्याप्त है।
___ हास्य वह यन्त्रांश है जिसके अभाव में जीवन-रूपी यन्त्र बिगड़ जाता है'--ये मेरे शब्द नहीं हैं, स्वामी रामतीर्थ के हैं।
_ स्मरण दिलाऊँ, हँसिये न, आज से करीब पच्चीस सौ वर्ष पूर्व महावीर भगवान ने व्यक्ति के हँसते-मुस्कराते जीवन के लिए ऐसा ही कुछ कहा था, वे तब एक आदमी ही थे । एक विचारक, एक परिब्राजक । उन्होंने कहा था-'जियो और जीने दो' और आप कह रहे हैं-हँसते-हँसते जियो'। यह बात महावीर की बात से ऊपर प्रतीत होती है,
तीर्थकर : जन. फर. ७९/२५
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