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आपकी भी यही राय हैं कि यह घोर अपमान है, एक बार इस घोर अपमान में भी जीवन को गुदगुदाने वाले क्षण का जन्म हुआ था ।
इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री मिस्टर लायड जार्ज एक सभा में अपने मंत्रिमण्डल के कार्यों की तारीफ कर रहे थे । यह पहले महायुद्ध-काल की बात है । उनके विरोधी एक श्रोता ने सभा में खड़े होकर पूछा - " मिस्टर लायड जार्ज, आप तो शायद वही हैं, जिसके पिता गधे की गाड़ी चलाया करते थे ?"
हँसना अंग्रेजों का स्वभाव है, तो लोग हँस पड़े, पर तभी लायड जार्ज ने कहा - " दोस्तो, यह सवाल सही है । मेरे पिता वाकई गधे की गाड़ी चलाया करते होंगे, पर वह गाड़ी तो अब बिक गयी है । हाँ, गधा अभी तक मौजूद है ।"
ओह, कुछ न पूछिये कि लोग किस तरह हँसे, किस तरह हँसे कि लायड जार्ज के बार-बार कहने पर भी हँसी के फव्वारे बन्द न हुए और जलसा -काजलसा लोट-पोट हो गया ।
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अच्छा,
हँसी और गुदगुदी की आवाजें तो आप काफ़ी सुन चुके, अब एक ऐसी बात सुनिये कि जिसमें न शब्दों की आवाज़ है, न हँसी की, फिर भी वह जीवन को गुदगुदाने वाले क्षणों का सर्वोत्तम प्रतीक है ।
इटली के प्रसिद्ध देशभक्त मेजिनी उन दिनों निर्वासित थे । एक दिन वे अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक कार्लाइल से मिलने गये । कार्लाइल ने बहुत आदर से उनका अभिनन्दन और स्वागत किया। इसके बाद वे अलाव के पास बैठ गये और चुपचाप कई घटों तक बैठे रहे, कोई कुछ नहीं बोला ।
जब मेजिनी चलने के लिए उठे, तो कार्लाइल ने कहा " आज की शानदार मुलाकात से बहुत आनन्द मिला और इन क्षणों की याद बहुत दिनों तक जीवन को गुदगुदाती रहेगी ।"
क्या आपको भी कभी जीवन को गुदगुदाने वाले ऐसे कुछ क्षणों का अनुभव हुआ है ? और क्या ऐसे क्षण को जन्म देने की कला आप जानते हैं ? नहीं, तो अभ्यास कीजिये; क्योंकि घरेलू और सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाये रखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है ।
( भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित लेखक की अत्यन्त लोकप्रिय कृति 'महके जीवन, चहके द्वार' से साभार ) ।
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तीर्थंकर : जन. फर. ७९/११
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