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________________ एक कवि सम्मेलन में दोनों साथ गये । जब शुक्लजी अपनी कविता आरम्भ करने लगे, तो उनके मित्र ज़ोर से बोले - " अब आप असुर की कविता सुनिये" । असुर का अर्थ बिना सुर की भी और असुर का अर्थ राक्षस भी। बड़ी सीधी चोट थी, पर बड़ी सधी हुई चोट थी। शुक्लजी उस चोट को सह गये, पर जब वे मित्र कविता पढ़ने खड़े हुए, तो शुक्ल जी ने खूब जोरदार स्वर में कहा - " आप लोग असुर की कविता तो सुन ही चुके, अब ससुर की कविता सुनिये "। असुर की तरह ससुर के भी दो अर्थ हैं। पहला सुरसहित और दूसरा श्वसुर-सुसरा, जो एक सम्बन्ध भी, पर एक गाली भी । सारा समाज हँसते-हँसते लोट-पोट हो गया और उस क्षण ने सभी के जीवन को गुदगुदा दिया। इस आनन्दमय क्षण को जन्म देने का काम बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से प्रयोग किये एक शब्द ने ही तो किया, पर यह कोई नियम नहीं है कि बुद्धिमत्तापूर्ण शब्दों के प्रयोग से ही ऐसे क्षण का जन्म हो । अनेक बार बुद्धिहीन शब्दों से भी गुदगुदाने वाले क्षण का जन्म होते देखा गया है । प्रसिद्ध अभिनेत्री ग्रेस्केली जनवरी में माँ बनने वाली है, पत्रों में यह सम्मा चार छपा। एक परिवार में वह समाचार पढ़ा गया और उस पर चर्चा हुई, तो दस वर्ष की एक लड़की ने अपनी माँ से पूछा, “माँ ग्रेसकेली को यह कैसे पता चला कि जनवरी में उसके बच्चा होने वाला है ?" माँ चिन्ता में पड़ गयी कि बच्ची को क्या जवाब दे, पर तभी उसकी छोटी लड़की, जिसकी उम्र पाँच-छह साल की ही थी, चटाख से बोली - " वाह, सब पत्रों में यह समाचार छपा है, तो क्या केली को पढ़ना नहीं आता " । कितने अबोध बोल थे ये, पर इन्होंने एक ऐसे क्षण को जन्म दिया, जिसने बहुत दिनों तक उस परिवार को गुदगुदाया और जो आज भी हमारे मन को गुदगुदा देता है । 00 व्यंग्य बुरी चीज है, इसीलिए उसे मुहावरे में व्यंग्य-बाण कहा गया है, पर बह भी कभी-कभी हमारे जीवन को गुदगुदा देता है - बिल्कुल उसी तरह, जैसे चतुर वैद्य विष से भी चिकित्सा का काम ले लेता है । विश्वविख्यात लेखक एच.जी. बेल्स की पुस्तक शेप ऑफ थिंग्स टू कम पढ़कर एक घमण्डी अभिनेत्री ने उन्हें पत्र लिखा- " पुस्तक मुझे बहुत पसन्द आयी, पर जनाब, यह तो बताइये कि यह आपने किससे लिखवायी थी ?" इसे पढ़कर वेल्स नाराज हो सकते थे और उस चिट्ठी को फाड़ कर फेंक सकते थे, पर नहीं, उन्होंने उसका उत्तर दिया और उसमें लिखा, "आपको यह पुस्तक पसन्द आयी, धन्यवाद, पर यह तो बताइये कि यह पुस्तक आपको किसने Jain Education International तीर्थंकर : जन. फर. ७९/९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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