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________________ एक लेख : पुराना, फिर भी नया आनन्द का क्षण क्या आपको भी कभी जीवन को गुदगुदाने वाले ऐसे कुछ क्षणों का अनुभव हुआ है, और क्या ऐसे क्षणों को जन्म देने की कला आप जानते हैं ? नहीं, तो अभ्यास कीजिये; क्योंकि घरेलू और आम जीवन को समृद्ध बनाये रखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है । कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' एशिया के एक प्रसिद्ध जीवन - शास्त्री ( श्री लिन यू तांग) का कहना है कि. ज़िन्दगी संघर्ष से भरी हुई है। एक के बाद एक खींच-तान लगी ही रहती है. और चैन नहीं मिल पाती, इसलिए जीवन में उन क्षणों की बहुत क़ीमत है, जो जीवन को गुदगुदा दें और खींच-तान की तेजी को भुला दें । इस जीवन - शास्त्री ने लोगों को एक बड़ा दिलचस्प मशवरा दिया है कि जब तुम अपने किसी मित्र - दोस्त से बात करने बैठो, तो घड़ी का मुंह दीवार की तरफ़ कर दो । जब उनसे पूछा गया कि बातचीत का और घड़ी का क्या सम्बन्ध ? तो उत्तर मिला कि वह कम्बख्त याद दिलाती रहती है कि इतनी देर हो गयी इतनी देर हो गयी और इस तरह आनन्द का वह क्षण खण्डित हो जाता है, जो मित्र की बात-चीत से मिलता है । इसी विद्वान् के जीवन का एक संस्मरण बहुत मज़ेदार है । उनके देश के राष्ट्रपति - चांगकाईशेक - ने अपने देश (चीन) में शिक्षा के प्रचार पर विचार करने के लिए एक विदेशी विद्वान् को बुलाया । निश्चय हुआ कि राष्ट्रपतिजी चार बजे शाम को उनसे बातें करें और उस बातचीत में ये महाशय भी उपस्थित रहें, जो घड़ी का मुंह दीवार की तरफ़ करने का मशवरा देते हैं। इसकी सूचना इन्हें दे दी गयी और इनसे चार बजे आने की स्वीकृति ले ली गयी । ठीक चार बजे वे विदेशी विद्वान् राष्ट्रपति भवन पहुँच गये, और राष्ट्रपति तो वहाँ थे ही, पर ये तीसरे महाशय कहाँ हैं ? सवा चार बज गये और चाय आ गयी, पर वे नहीं आये । लो ये बज गये साढ़े चार और तब भी वे लापता । राष्ट्रपति का सेक्रेटरी उनके घर गया, तो पता चला कि वे तो तीन बजे ही राष्ट्रपति भवन चले गये थे । सेक्रेटरी जब उनके घर से लौट रहा था, तो वे बाजार में उसे मिले। वे बाजार में क्या कर रहे थे ? राष्ट्रपति भवन में एक विदेशी विद्वान् से सलाह करने के मुकाबले वह कौन-सा ज़रूरी काम था, जिसे वे बाजार में कर रहे थे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only तीर्थंकर : जन. फर. ७९/७ www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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