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________________ क्या आपने कभी अनुभव किया है कि हँसी कडुवाहट के मैल को काटती है और वार्तालाप को आगे बढ़ाने में स्निग्धता प्रदान करती है ! कितना ही गंभीर वातावरण क्यों न हो, कितनी ही तनावपूर्ण परिस्थिति क्यों न हो, हवा कितनी ही गर्म क्यों न हो, हँसी की एक हल्की बौछार ठंडक पहुँचाती है, तनाव शिथिल करती है और बोझ हलका कर जाती है, इसीलिए एक अंग्रेज निबंधकार ने हँसी को संवाद का सहगान कहा है । हँसी जाड़े के दिनों में धूप का एक टुकड़ा है। वह गरमाई भी देती है और रोशनी भी । मनुष्य जिस दिन एक बार भी नहीं हँसता, उसके लिए वह दिन मनहूस होता है । वह उसे पूरी तरह गँवा देता है । जितने ही दिन मनुष्य इस प्रकार गँवा देता है, उतनी ही अपनी जिन्दगी वह छोटी करता जाता है । सुप्रसिद्ध हास्य-लेखक लॉरेंस स्टर्ने ने एक बार कहा था - ' जब मनुष्य मुस्कराता है, और उससे भी अधिक जब वह हँसता है, तब मुझे ऐसा लगता है कि वह हर बार ज़िन्दगी की छोटी-सी अवधि को थोड़ा बढ़ा रहा है ।' मन्द मुस्कराहट से लेकर अट्टहास तक हँसी की अनेक छटाएँ हैं । हँसी अपने रंगों को गिरगिट की तरह बदलती है। एक भावना - रहित खोखली हँसी है तो एक औपचारिकता के लिए मात्र खीसें निपोरना है । एक हँसी में घृणा है, तो एक अन्य में व्यंग्य है। हँसी बनावटी भी हो सकती है, और हँसी हार्दिक भी होती है । एक अश्लील, भद्दी हँसी है तो एक सुसंस्कृत स्मित हास्य है; किन्तु सर्वोत्तम हँसी सहज प्रेम की हँसी है जो होठ और हृदय दोनों को एक साथ आंदोलित करती है - इसमें न दुराव है न व्यंग्य, न बनावट न औपचारिकता । बच्चों की अबोध हँसी को कौन अनदेखा कर सकता है और लड़कियों की खनखनाहट किसे आकृष्ट नहीं करती ? क्या आपने कभी बूढ़ों की पोपली हँसी पर ध्यान दिया है ? उनके चेहरे की लकीरें सिर्फ़ इतना बताती हैं कि कभी उस पर भी वह कहाँ-कहाँ खेला करती थी ! जो मनुष्य हँसता नहीं, उससे सतर्क रहो। ऐसा व्यक्ति कभी भी विश्वासघात कर सकता है । वस्तुतः उसका सारा जीवन ही एक विश्वासघात है । जो मनुष्य बिला वजह हँसता है, वह मूर्ख है; उसकी मित्रता कभी भी खतरे में डाल सकती है । जो व्यक्ति बेहद हँसता है - बन बन कर हँसता है - वह सहानुभूति का पात्र है क्योंकि हो सकता है उससे अधिक और कोई दुःखी न हो । हँसी मनुष्य के चरित्र को अभिव्यक्त करती है । हम किस पर हँसते हैं, इससे पता लगता है कि हम कैसे व्यक्ति हैं । अहंकारी व्यक्ति दूसरों की कमजोरियों पर हँसते हैं । जो पर पीड़ा में आनन्द लेता है वह अपने साथियों के दुर्भाग्य पर हँसता है । यदि हँसना ही है तो अपनी कमजोरियों और अपने दुर्भाग्य पर हँसो। ऐसी हँसी व्यक्ति को बल देती है और दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देती है । ऐसा व्यक्ति हँसते-हँसते जीता है और मरते-मरते भी हँसता है । तीर्थंकर : जन. फर. ७९/६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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