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________________ हँसते-हँसते जियो “क्या आपने कभी अनुभव किया है कि हँसी कडुवाहट के मैल को काटती है और वार्तालाप को आगे बढ़ाने में स्निग्धता प्रदान करती है कितना ही गंभीर वातावरण क्यों न हो, हवा कितनी ही गर्म क्यों न हो, हँसी की एक हल्की फुहार ठंडक पहुँचाती है, तनाव शिथिल करती है, और बोझ हलका कर जाती है। 0 सुरेन्द्र वर्मा मानव-सस्कृति के आरम्भ से ही मनुष्य स्वयं को परिभाषित करने का प्रयत्न करता आया है। उसने अपने आपको विचारशील प्राणी, सामाजिक प्राणी, इतिहास-जीवी प्राणी, नैतिक प्राणी, राजनैतिक प्राणी और उपकरणों का उपयोग करने वाला प्राणी आदि अनेक अवधारणाओं द्वारा सुनिश्चित किया है। किन्तु इन सबमें उसकी एक परिभाषा का अपना विशिष्ट स्थान है जिसके अनुसार वह एक हँसने वाला प्राणी है। इसमें संदेह नहीं कि मनुष्य के अतिरिक्त शायद ही कोई प्राणी कभी हँसा हो। लकड़बग्घे की आवाज़ मनुष्य की हँसी से थोड़ी-बहुत मिलती-जुलती है और सुना है हंस (पक्षी) हँसता है। किन्तु मानव-समाज के किसी भी व्यक्ति ने हंस की हँसी शायद ही कभी अनुभव की हो। ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य अपने अतिरिक्त किसी भी प्राणी को हँसते हुए देखना ही नहीं चाहता ! उसे डर है कि यदि अन्य प्राणियों ने कहीं हँसना सीख लिया तो उन्हें मनुष्य के अतिरिक्त हँसने के लिए और कौन सर्वाधिक उपयुक्त पात्र मिल सकेगा। वस्तुतः मनुष्य को न केवल हँसने की क्षमता प्राप्त है बल्कि शायद वही एक मात्र प्राणी है जिस पर हँसा जा सकता है। जो-जो और जैसे-जैसे करतब मनुष्य करता है, भला क्या मजाल कि कोई अन्य प्राणी कर सके । __ मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का राज़ उसकी हँसी है-यह मुझे अल्पावस्था में ही पता चल गया था। तब मैं काफ़ी छोटा रहा होऊँगा । एक वैद्यजी मेरे परिवार के स्वास्थ्य की देख-रेख करते थे। एक दिन मैं उनके चिकित्सालय में दवा के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। वैद्यजी एक मरीज को देख रहे थे। उसे शायद अनिद्रा की बीमारी थी। बहुत देर तक, बहुत दुःखी मन से वह वैद्यजी को अपनी बीमारी के अनेक लक्षण बताता रहा। उसकी बात खत्म होने पर वैद्यजी ने उससे एक बड़ा गम्भीर प्रश्न पूछा- आप हँसे कबसे नहीं हैं ? कष्ट पाने पर जानवर रो सकते हैं, लेकिन वे हँस नहीं सकते : आप तो आदमी हैं! तीर्थकर : जन. फर. ७९/५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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