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________________ संपादकीय क्या आप हँस सकते हैं ? हँसना आसान है, हँसना मुश्किल है; हँसना एक कला है, हँसना एक विज्ञान है; आसान वह तब है जब आप पूरी तरह, पूरी निष्ठा और स्वाभाविकता से सरल हों, मानवीय हों; पाशविक या बर्बर न हों- और मुश्किल तब है जब आप पेचीदा हों, जटिल हों, जालसाज़ हों, मनुष्य को मनुष्य न मानते हों, उसका शोषण करते हों; बर्बरताओं और क्रूरताओं में हुलसते-जीते हों; या फिर आधे में हों यानी न माया में हों, न राम में। ऐसे अधर में झूलते-तड़पते लोग हँसते तो हैं, किन्तु उनकी यह हँसी एक हथकंडे की हँसी होती है, जिसकी पीठ पर जहर लहरें मारता है, लगता है वह कोई बामी, या माँद है; जो ऊपर से स्पष्ट नहीं है, किन्तु भीतर से रक्त-पिपासु है। इसलिए, ज़रूरी है कि आप हँसते-हँसते जीने की कला जाने और उसे एक कुशलअप्रमत्त विज्ञानी की तरह से जानें; यानी यह जानें कि स्वाभाविकता ही हँसी है, अ-स्वाभाविकता या वैभाविकता. रुदन है, अर्थात् स्वयं में समस्त लोक को देखना-पाना हँसने की स्थिति है, अन्य शब्दों में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' हँसने की हालत है, और स्वयं को अहम् - अभिमान में डाले रहकर अन्यों को छोटा, हीन, हेटा समझना रुदन है, एक अन्तहीन रुदन; इसलिए जो हँसना चाहता है उसे सम्यक्त्व को जानना होगा, और यदि वह ऐसा नहीं कर पायेगा तो उसे वे स्थितियाँ, जो झूठी हैं, सच लगेंगी; और तिस पर भी यदि वह हँसेगा तो एक झूठी, मिथ्या, रूढ़ हँसी ही वह हँसेगा।.. गरज़ यह है कि तब वह एक औपचारिक हँसी हँस पायेगा, ऐसी हँसी जो उसके व्यक्तित्व का अंग कभी नहीं होगी, बल्कि ऐसी कोई हँसी होगी वह, जो पके हुए घड़े पर क्वाँरी मिट्टी की तरह चिपकी होगी, मूल में यह हँसी भीतर गहरे से आयी हुई हँसी होगी ही नहीं - इसलिए यदि हँसी को उल्लास, हर्ष, आनन्द इत्यादि का सीधा पर्याय बनाना है, तो उसे अन्तस् की गहराइयों में से उठ-फूटकर सारे जीवन में छा जाना होगा और विश्व के हर एक प्राणी को अपनी सक्षम मंगलमयी भुजाओं में समेट लेना होगा; हँसी की एक विशेषता है कि यदि वह वास्तविक होती है तो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि वह दूसरों के दिल को न छुए और उसके दर्द से कोई रिश्ता बनाये न, तीर्थकर : जन. फर. ७९/३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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