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समाचार-परिशिष्ट
वाराणसी में संपन्न
• संपादन एवं अनुसन्धान प्रशिक्षण शिविर
प्राचीन ग्रन्थों के संपादन एवं अन- का अध्ययन प्राचीन ग्रन्थों के अनुशीलन सन्धान कार्यों के प्रशिक्षण हेतु एक शिविर के बिना पूरा नहीं हो सकता। ऋषियो, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या- आचार्यों और विचारकों के चिन्तन को धर्म-विज्ञान संकाय के तत्त्वावधान में गत हजारों वर्षों से विभिन्न लिपियों में विभिन्न २१ से २७ अगस्त, '७८ को आयोजित उपादानों पर लिख कर सुरक्षित रखा गया। किया गया था, जिसमें भारत के ३७ समय के दीर्घ अन्तराल में काल के कराल विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा-संस्थानों गालों से इन पोथियों को बचा कर रखें के ५६ अनुसन्धानकर्ता और विशेषज्ञ रहना कम कठिन नहीं था, फिर भी सम्मिलित हुए।
हमारे पूर्वजों ने उन्हें प्राणों से लगा कर रखा शिविर का उदघाटन करते हुए जैन और एक के बाद दुसरी प्रतिलिपि करके मठ, मडबिद्री (कर्नाटक) के स्वस्ति श्री उन्हें नष्ट होने से बचाया। भट्टारक चारुकीति स्वामीजी ने कहा कि उन्होंने 'छक्खंडागम' नामक उस संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि प्राकृत ग्रन्थ की भी चर्चा की, जिसकी भाषाओं के प्राचीन ग्रन्थ भारतीय सांस्कृतिक संसार-भर में मात्र एक ही प्रति उपलब्ध इतिहास के विश्वकोश हैं। प्राच्यविद्या है और जो ताड़पत्रों पर प्राचीन कन्नड़ की विभिन्न शाखा-प्रशाखाओं के अध्ययन लिपि में लिखी गयी है तथा हजारों वर्षों से अनुसन्धान के ये आधार-स्तम्भ हैं । मडबिद्री में सुरक्षित है। भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन और संस्कृति स्वामीजी ने इस बात पर आश्चर्य
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संपादन एवं अनुसन्धान प्रशिक्षण शिविर, वाराणसी के उद्घाटन समारोह में अध्यक्षीय भाषण करते हुए काशी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. हरिनारायण ।
तीर्थंकर : नव-दिस. ७८
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