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कसौटी
इस स्तम्भ के अन्तर्गत समीक्षार्थ पुस्तक अथवा । पत्र-पत्रिका की दो प्रतियाँ भेजना आवश्यक है।
आँखों ने कहा : मुनि बुद्धमल्ल : आदर्श साहित्य संघ, चूरू (राजस्थान); मूल्य-दो रुपये पच्चीस पैसे ; पृष्ठ १११; द्वितीय संस्करण, क्राउन-१९७८ ।
समीक्ष्य पुस्तक में एक सहृदय साधु-साहित्यकार के प्रतीकपरक उद्गार हैं, मानना चाहिये कि ये बोधकथात्मक संवेदनाएँ उनकी घटनाओं की प्रखर अनुवादशक्ति के अद्वितीय प्रमाण हैं। किसी चाक्षुष स्थूल दृश्य को भाषा में किस तरह उल्था जा सकता है, प्रस्तुत कृति में इसे सहज ही देखा जा सकता है। विद्वान् लेखक की 'ईटरप्रीटेटिव्ह प्रज्ञा' अप्रतिम है, उसका देखना और लिखना जहाँ एक हुआ है, वहाँ घटनाएँ सजीव हो उठी हैं, और उन्होंने मर्म को छू लिया है। पुस्तक में १११ गद्यकाव्य-खण्ड हैं, किन्तु प्रायः सभी मन को, पकड़ते, झकझोरते और झनझनाते हैं। इनमें ना-कुछ को बहुत-कुछ में बदलने की शक्ति प्रकट हुई है। प्राकृतिक प्रसंगों को जीवन से उनकी संपूर्ण जीवन्तता में जोड़कर गद्यकाव्यकार ने पाठक को स्थल-स्थल पर विस्मित किया है। ढोल और पूजा, नन्हा बीज, कूटनीति, स्थितप्रज्ञता, दूरी और निकटता, लघु का सामर्थ्य इसके अच्छे प्रमाण हो सकते हैं। भाषा सर्वत्र सरल और सुबोध है। यदि 'द्वितीय संस्करण के लिए' में उल्लिखित चौरकर्म में प्रामाणिकता है (है इसलिए कि लेखक ने कुछ ठोस सुबूत आकलित किये हैं), तो यह हम सबके लिए दुश्चिन्ता का विषय है और पूरी शक्ति के साथ बहिष्करणीय है।
श्रीमद् राजचन्द्र अध्यात्म कोष (गजराती) : संग्रहकर्ता-भोगीलाल गि. शेठ; के. के. संघवी ५०५, कालबादेवी रोड, बम्बई-२; पृष्ठ २०+-३३८; क्राउन-१९७४ ।
आलोच्य ग्रन्थ स्वाध्याय-संदर्भ की दृष्टि से एक अत्यन्त लोकोपयोगी प्रकाशन है। संग्रहकर्ता ने इसे 'एन्सायक्लोपीडिया ऑफ स्पिरिच्युअल साइन्स' संबोधित किया है। कोश में यद्यपि पृष्ठ कम हैं तथापि उसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। संग्रहकर्ता ने परिश्रमपूर्वक श्रीमद् के प्रकाशित-अप्रकाशित विविध ग्रन्थों से शब्द चुने हैं और उन्हें अकारादिक्रम से संयोजित किया है। उक्त प्रकाशन से जिज्ञासुओं, मुमुक्षुओं एवं शोधार्थियों के लिए एक नया द्वार खुला है। जैसा कि संपादक ने लिखा है ग्रन्थ की रूपरेखा एक दशाब्द पूर्व ही तैयार हो गयी थी, किन्तु प्रकाशन में विलम्ब हुआ। प्रस्तुत ग्रन्थ को नगीनदास गि. शेठ के न्यासधारियों ने प्रकाशित किया है। हमें विश्वास है कि इससे प्रेरणा लेकर यदि जैना
तीर्थंकर : नव-दिस. ७८
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