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________________ जैन दिवाकर पंच-पंचाशिका (पचपनिका) (संस्कृत - वंशस्थ; हिन्दी-हरिगीतिका; रचयिता - मुनि घासीलाल महाराज) प्रणम्य देवादिनुतं जिनशं तीर्थंकरं साञ्जलि घासिलालः। वंशस्थ वृत्ते वितनोति लोके ध्वनाविला चौथमलस्य कीर्तिम् ।। मुनि घासिलाल जिनेन्द्र की करवन्दना विधि सर्वथा। विख्यात करता लोक में मुनि चौथमलजी यशकथा ।।१।। महात्मनां पुण्य जुषाम् षीणां शृण्वन् यशः शुद्धति लभन्ते । प्रसिद्धि रेषा जगतां हिताय प्रयत्नशीलं कुरुते मुनिमाम् ।। है ख्यात जग में ऋषिजनों की यश सुनें मति शुद्धि हो। संयत बनाती है मुझे यह लोकहित की बुद्धि हो ।।२।। ऋतु वसन्तं समवाप्य वाटिका विधुं यथा शारदपौर्णमासिका। व्यराजत प्राप्य तथा जगत्तलं दिवाकरं चौथमलं मुनीश्वरम् ॥ ज्यों पा वसन्त को वाटिका शरदिन्दु को राका निशा। त्यों चौथमल मुनिराज से सर्वजन राजित यशा ।।३।। मही प्रसिद्धा खलु मालवामिधा नृपैरभूद विक्रम भोजकादिभिः। तथैव जाता धरणी नु धन्या दिवाकरश्चौथमलेन साधुना ॥ विख्यात मालव भूमि थी उन भोज विक्रमराज से। भूलोक धन्या वह हुई श्री चौथमल मुनिराज से ॥४॥ मुनि भविष्णुं जननी तनूदभवं प्रसूय पूतं कुरुते कुलं स्वकम् । स्वकीय मात्रे स यश स्तदा दिशद् दिवाकरश्चौथमलो मुनीश्वरः॥ मुनि भवि सुत को जन्म दे जो कुल पवित्र करे वही। यह यश दिया निजमातुको श्री चौथमल मुनिराज ही ॥५॥ पुरातनं पुण्यफलें शरीरिणाम् सुखस्य हेतुर्य विनां सदाभुवः। अभूष्यल्लोकमिमं स्वजन्मना दिवाकरश्चौथमलो मुनीश्वरः॥ था पूर्व संचित पुण्यफल संतत सुखों का हेतु था। भूषित किया निज जन्म से जो चौथमल मुनिराज था।६।। महीविभूषा भुवनेषु मन्यते सभूषणा भारतवर्ष तस्तु सा। अभूद् यदंशे स तु सर्व भूषणो दिवाकरश्चौथमलो मुनीश्वरः॥ है लोक में भूषण यही भारत विभूषित भूमि है। जंह चौथमल मुनिराज भव वह सर्वभूषण भूमि है।।७।। चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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