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वास्तविकता सबको समझाई बड़ी खामी जिनशासन में पड़ी, ऐसे उद्भट वक्ता की; कौन पुकार सुने पशुओं की, उनकी एक महत्ता थी। गायन-कला में जो कुशल थे, श्रोता सब आदर करते थे, अन्यमती भी सादर सुनते, हृदय-पटल में धरते थे। घुम-घूम कर जनपद में सेपशुबली बन्द कराई है, वास्तविकता सबको समझाई, कष्ट सबको दुखदाई है।
ताराचन्द मेहता
सुरज आज अस्त वे गयो (तर्ज :- डागरी पे वेठो कबुतरा रो जोडो)
मु देखते ही रह गयौ गुरु रो मुखड़ो वाणी ऐसी गंजती जैसे शेर गरजतो ।।टेर।। धन्य निमच शहर जहाँ जन्म 2 लीन्हो, गंगाराम जीरा नन्द माता केशर रो प्यारो॥ हीरालाल गुरु थारे हाथ शीस पे धरीयो, संवत बावन रवीवार थै तो सन्सार छोडयो ।। झोपड़ी सु महला तक खुब रंग जमायो, नाम प्यारो चोथमल चहु दिशा चमकतो।। मरता थका जीवा ने यै खुब बचाओ, श्रमण संघरो सुरज आज अस्त वे गयौ । सौवीं जयन्ती मनावारो मन में अमावौ, मनोहर तो आज गुरु गुण गाय रयो।
-मनोहरलाल नागोरी संघ-ऐक्य के अग्रदूत वे प्रसिद्ध वक्ता जगत् वल्लभ, शासन के शृंगार थे। संघ-ऐक्य के अग्रदूत वे, हर हिवड़ा के हार थे। नाम-स्मरण कर आनंद पाओ। जिनके चरणों में राजा भी, अपना मस्तक धरते थे।। हर्षित होकर सभी वर्ग के, हर जन दर्शन करते थे। गुण कीर्तन पर बलि-बलि जाओ
-विजय कुमार जैन
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पीड़ाएँ हो गयी तिरोहित जैन दिवाकर ने अनजाने गीतों को उनवान (शीर्षक) दिया है। बेसुध झूम रहा हूँ, अब तक जाने कैसा जाम पिया है ?
हर आँधी, पतझर, तूफाँ में, मंजिल को आसान किया है। घोर बियाबाँ को भी तूने
गुलशन का विश्वास दिया है। हर अंधियारी काली कृष्णा, को पूनम का चाँद दिया है। तेरी वाणी का अमृत पी इस धरती का मनुज जिया है।
पीड़ाएँ हो गयीं तिरोहित खुशियों को आधार दिये हैं। तेरी सूधियों के स्वागत को,
यह मन सौ-सौ बार जिया है। तेरे यश-सौरभ का आसव जिसने भी इक बार दिया है। वह मृत्यु के कूल-कगारों, पर भी हँसता हुआ जिया है।
-निर्मल 'तेजस्वी
तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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