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________________ अगर ठहर जाता थानक पर रामपुरा का श्रमणोपासक बोला जैन दिवाकर से। सूत्र मांगलिक मुझे सुनायें जाना है बाहर घर से। मंगलपाठ श्रवण कर गुरु से श्रावक कुछ ही कदम चला। गुरु ने उसे बुलाया वापिस सोचा उसके लिए भला । माला एक फेर कर जाओ वरत रहे क्षण अशुभ अभी। थोड़ा-सा रुक जाना ही तो हो जाता शुभ कभी-कभी ।। समझा नहीं, दिया उत्तर यूं मैं हूँ अभी उतावल में। क्या अन्तर पड़ सकता है जी अशुभ क्षणों के उस फल में ? घर पर उसका इन्तज़ार कर रही पुलिस उससे बोली। चलो सेठ जी थाने जल्दी तज दो यह मूरत भोली ।। कहा सेठ ने मेरे द्वारा कहीं नहीं अपराध हुआ। फिर भी मेरे लिए निरर्थक कैसे खड़ा फिसाद हुआ ? थाने में ले गये वहाँ पर नहीं इन्सपेक्टर हाज़िर । बोले उनके आने पर ही होगा भेद सकल ज़ाहिर ।। चं चप्पड़ चल पाती किसकी बैठे सेठ स्वयं चुपचाप। सोचा नहीं अभी का लेकिन आया उदय पूर्वकृत पाप ।। चार बजे जब, बाहर से तब थानेदार पधारे हैं। पूछा, सेठ ! यहाँ पर कैसे आप हमारे प्यारे हैं। मुझे आपने बुलवाया यह पुलिस पकड़ कर लायी है। क्या मेरे हाथों की कोई पकड़ी गई बुराई है ? थानेदार लगा यूं कहने हाय हमारी भूल हुई। लाना किसे, किसे ले आये विधि-वेला प्रतिकूल हुई। माफ करो हम सबको सुख से आप पधारो अपने घर । महर नज़र जैसी रखते हो रखते रहना हम सब पर ।। आये सेठ शान्ति से निजघर गये दिवाकरजी के पास । कहा आपने, किन्तु न मैंने किया कथन पर कुछ विश्वास ।। गुरुवाणी पर श्रद्धा करता तो क्यों दुःख उठाता मैं। अगर टहर जाता थानक पर तो क्यों थाने जाता मैं । 'मुनि गणेश' जो गुरु कहते उसमें छिपा रहता कल्याण । जैन दिवाकरजी का जीवन कितना पावन और महान् ।। - गणेश मुनि शास्त्री चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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