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वन्दना
वह पिये संगठन के प्याले (भुजंगप्रयात)
श्रद्धा की ज्योति हृदय तले। अनेके नरेशास्तथामात्यवर्गाः वे भक्त सदा मन-धन से फले ।। पुरश्रेष्ठिवर्याश्च विद्वद्वराश्च । शत्रु मित्र बन, चरण धरे ।। सवर्णा अवर्णास्तथा मुस्लिमा रोग शोक भय भूत भगे , वा भवन् भक्तिनम्रा जनानां समूहा : जीवन में समता-शौर्य जगे।। गतो यत्र तत्रापि धर्मप्रचारोऽ
नन्दन-वन में विश्राम करे ।। भवत्सर्ववर्गेषु वर्णेष्वबाधः। गुरुवर की शिक्षा जो पाले। सभायां जना मन्त्रमुग्धाः प्रजाता
वह पिये संगठन के प्याले। मुनेः शीर्षकम्पेन साधं समस्ताः ।।। अशुभ कर्म सब शीघ्र झरे ।। धर्मप्रचारेण च भयसाऽसाववाप ।
-मुनि भास्कर कीर्ति विपुलां विशुद्धाम् ।
आत्मज्ञान के अनुपम साधक मान्योऽभवज्जैनदिवाकरेति ।
कलाकार जीवन के सच्चे, वक्ता प्रसिद्धश्च जनप्रियश्च ।।
कान्ति-शान्ति के पुंज परम ।। -नानालाल जवरचन्द रूनवाल ज्ञान-ध्यान की विविध विधा से,
पावन जीवन, उच्च, नरम ।। उन जैसा कुछ तो करें. प्रवहमान गंगा का निर्मल, शिक्षा देते हम
नीर सभी का उपकारी।
प्रवचन की निर्मल धारा से, राम, कृष्ण, गौतम, गांधी,
तरे अनेकों .
संसारी।। और महावीर के
आत्मज्ञान के अनुपम साधक, सद्गुणों की
चमके जैसे नभ में चन्द । सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र की,
भारतीय जन-जन के मन में, सत्य, अहिंसा और त्याग की,
बसे सुमन में यथा सुगंध ।। मानव के उत्थान की,
राजा, राणा, रंक सभी जन, देश पर बलिदान की;
चरणों में पाते आनन्द । फिर, शिक्षक बन
वाणी-भूषण, कुशल प्रवक्ता, असत्य का पावन हम क्यों करें
सुनकर लेते गुण मकरन्द ।। झट, चोरी और दुराचार
तेरे पावन उपदेशों पर, हमें शोभा देते नहीं
जो भी कदम बढ़ायेंगे। हमारे आदर्श हैं वे,
कर्मपाश झट काट जगत् से, उन जैसा कुछ तो करें।
शीघ्र वही तर जाएंगे। -घेवरचन्द जैन
-जितेन्द्र मुनि
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तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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