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कुन्दन-भवन उसी दान का प्रतीक है। महाराजश्री ने कोटा-चातुर्मास में जैन इसके अलावा कालूरामजी कोठारी, स्वरूप- एकता का बीजारोपण किया। उन्होंने चन्दजी तालेड़ा, देवराजजी सुराणा, चुन्नी- दिगम्बर, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक मुनिलालजी सोनी तथा चाँदमलजी टोडरवाल राजों को एक मंच पर बैठाकर प्रवचन गुरुदेव के अनन्य उपासकों में थे। करवाए। कोटा की जनता पर आज भी
उसका प्रभाव है। उनकी उदारता, महागुरुदेव की स्मृति में जैन दिवाकर
नता और साधना अद्वितीय थी। दिव्य ज्योति कार्यालय, जैन दिवाकर पुस्तकालय तथा जैन दिवाकर फाउंडेशन
उनकी जन्म-शताब्दि-वर्ष की अवधि में जैसी संस्थाएं समाज में ज्ञान-प्रसार एवं
व्यापक दृष्टिकोण अपना कर रचनात्मक प्रचार तथा समाज-सेवा का कार्य कर रही
कार्यों द्वारा ही हम उनके प्रति सच्ची हैं। ये गुरुदेव की स्मृति को सदा याद
श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। उनकी दिलाती रहती हैं।
अमरवाणी आज भी सार्थक है। उनका
जीवन स्वतः प्रामाणित है कि उन जैसे गुरुदेव का समस्त जीवन कर्मठ तपस्वी महापुरुष किसी जाति-संप्रदाय विशेष के के रूप में तो था ही, साथ ही वे जैन । नहीं होते, वे तो प्राणिमात्र के कल्याणार्थ जगत् के सजग प्रहरी भी थे। आज गुरुदेव अवतरित होते हैं । फूल सूख जाता है, लेकिन की शताब्दी पर यह दृढ़ संकल्प करते हुए सुगंध फैला जाता है। श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं कि जिस मार्ग
-मानवमुनि, इन्दौर का अनुसरण गुरुदेव ने किया, उस मार्ग पर चलते हुए श्रमण-संस्कृति की रक्षा करते
एक आलोक पुँज रहेंगे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धामयी श्रद्धेय जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथश्रद्धांजलि है।
मलजी म. सा. विश्व के वन्दनीय सन्त-अभयराज नाहर, ब्यावर रत्न थे। उनके जीवन ने जन-जन को
आह लादित तथा प्रकाश-पथ की ओर 'सर्वजनहिताय की भावना से ओतप्रोत प्रेरित किया। वे राजाओं के राजप्रासादों से
लेकर भीलों की कुटियों तक अहिंसा का __ मानव-समाज के आध्यात्मिक सम्राट् प्रचार करनेवाले प्रभावशाली गरुदेव थे। जन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज दस्यओं और वैश्याओं ने उनके प्रवचनों के दर्शन एवं सेवा करने का लाभ बाल्या- से प्रेरित होकर अपने जीवन को सच्चे वस्था से ही मिलता रहा। उनका अन्तिम . पथ की ओर अग्रसित किया। चातुर्मास कोटा में हुआ, वहाँ भी कुछ समय सेवा में रहने का सौभाग्य मिला।
चित्तौड़गढ़ जनपद के डूंगला के समीप
बिलोदा गाँव में रात्रि विश्राम हेतु गुरुदेव जब उनके जीवन का चिन्तन करता हूँ, उदा पटेल के मकान पर ठहरे हुए थे, तो ऐसा लगता है कि वे जैन समाज के ही उदा पटेल के यहाँ डाका डालने की दस्युवर्ग नहीं थे, वे भगवान् महावीर के सिद्धान्तों की सुनियोजित योजना थी। दस्युवर्ग को के अनुरूप मानव-समाज के कल्याण की जब यह विदित हुआ कि चौथमलजी म. सा. भावना से ओतप्रोत रहे। उनके प्रवचन यहाँ पर विराजते हैं, तो उन्होंने निश्चय सुनने के लिए सभी कौम के लोग आते थे। किया कि यहाँ डाका नहीं डालेंगे । श्रोताओं के जीवन में उनके प्रवचनों का यह है गुरुदेव के व्याख्यानों का हरएक क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ता था।
वर्ग पर प्रभाव।
चौ. ज. श. अंक
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