SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सफलता के लिए अपनी हार्दिक शुभ- हो सका, वह उन महान् संत के लोकोपयोगी कामनाएँ प्रेषित करता हूँ। - मार्गदर्शन से हुआ। __-चन्दनमल 'चाँद', बम्बई वे एक महान् ओजस्वी वक्ता भी थे। मैत्री भावना के महान् साधक उन्होंने महाराष्ट्र की भूमि को पावन करके लोकोद्धारक उपदेश दिये, जिसके हम सब स्व. जैन दिवाकर श्रद्धेय चौथमलजी ऋणी हैं। म. सा. का प्रभाव आज सकल जैन समाज में उन महान पुण्यात्मा की जन्म-शताब्दी परिव्याप्त है। इसका कारण यह है, उनके मनाने का निर्णय उचित और स्वागत योग्य दिलोदिमाग में सभी धर्मों और जन-जतियों है। उनके कार्य से लोगों की चारित्र्य शुद्धि के प्रति समादर और समन्वय का भाव था। हो और नैतिकता बढ़ती रहे, यही मेरी मैत्रीभावना के महान् साधक के शुभकामना है। चरण-कमल जिधर भी आगे बढ़ते थे, उधर -चन्द्रभान रूपचन्द डाकले, जन-जन में धर्म के प्रति नयी श्रद्धा, नयी श्रीरामपुर (अहमदनगर) स्फूर्ति और नयी चेतना का संचार होता था। उनके प्रभावोत्पादक मंगलमय प्रवचनों श्रमण-संस्कृति के सजग प्रहरी में जैन क्या जैनेतर भी हजारों की संख्या जैन दिवाकर गुरुदेव चौथमलजी में लाभ लेते थे। महाराज आगम शास्त्रों के ज्ञाता थे । आपने मैं श्रद्धेय जैन दिवाकरजी के चरण आध्यात्म का सही बोध कराकर कुरीतियों, कमलों में अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अन्धविश्वासों एवं सामाजिक विरोध को अर्पित करता हूँ। दूर करने का सतत प्रयत्न किया । गुरुदेव के ब्यावर में पाँच चातुर्मास हुए, जिनका आपको मरहूम कहता कौन, जैन समाज पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने आप जिन्दों के जिन्दा हो । अनेकांत दर्शन का प्रतिपादन करके सर्वज्ञ के आपकी नेकियाँ बाकी, प्रति सच्ची श्रद्धा के भाव जागृत किये। आपकी खूबियाँ बाकी । आप सतत ही आगम के अभ्यासी रहे -फतहसिंह जैन, जोधपुर और गढ़तम रहस्यों को बतलाते रहे। अहिंसा, स्याद्वाद, अनेकांत, अपरिग्रह लोकोपयोगी मार्गदर्शन और सत्य की खोज में ही उनका सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हुआ। भारतीय संस्कृति में संतों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने झोपड़ियों से वे श्रमण-संस्कृति के रक्षक थे । ब्यावर महलों तक पहुँच कर लोगों की धार्मिक गुरुदेव का प्रिय क्षेत्र माना जाता है। जबएवं नैतिक जागृति की है। उन्हीं संतों की जब ब्यावर में चातुर्मास हुआ, तब-तब यहाँ शृंखला में जैन दिवाकर, प्रसिद्ध वक्ता के श्रावकों ने अनन्य भक्ति एवं श्रद्धाभाव से गुरुदेव के वचनों को सुना और उन्हें पूज्य श्री चौथमलजी महाराज भी हैं। जीवन में उतारने की कोशिश की। उनके दर्शन का मुझे लाभ नहीं मिला, आपकी सुमधुर वाणी एवं व्याख्यानों से किन्तु उनके वार्य और साहित्य आदि को प्रभावित होकर उस समय दानवीर सेठ पढने तथा सुनने से उनका व्यक्तित्व बहत कन्दनमलजी कोठारी ने रु. १,२५,००० का ही ऊँचा मालूम हुआ। जो परिवर्तन शासन दान निकाला, जिसका उपयोग विद्यादान, तया कानून से मनुष्य के अन्तरंग में नहीं औषधिदान तथा सेवारूप में होता रहा है। तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy