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________________ के धनी मुनिराजश्री का होना सारी जैन हृदयस्पर्शी होते थे। उनके प्रवचन खंडनपरम्परा के लिए गौरव की बात है। उनकी कुतर्क आदि से अछूते रहते थे। उन्होंने सदैव चुम्बकीय वाणी भी कइयों के हृदय में सामाजिक एकता और वात्सल्य को सुदृढ़ गूंजती है और अंधेरे क्षणों में प्रकाश देती बनाने का प्रयास किया । वे लोकैषणा से रहती है। कोसों दूर थे। उन्होंने पद-प्रतिष्ठा आदि _ में इस महान् दिवंगत मनिराजश्री के को महत्त्व नहीं दिया । प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज करता हूँ। का जीवन हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत है। मैं -भूरेलाल बया, उदयपुर अपनी श्रद्धा-सुमन उनके चरणों में समर्पित करता हूँ। शुभकामनाएँ और प्रणाम -भगतराम जैन, दिल्ली जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी ज्वाजल्यमान नक्षत्र की जन्म-शताब्दी-महोत्सव की सफलता के लिए श्रीमान् महाराणा साहब (उदयपुर) पूज्य जैन दिवाकरजी अपनी पीढी के अपनी शभकामनाएं प्रेषित करते हैं तथा एक ज्वाजल्यमान नक्षत्र थे । उनका उपस्थित आचार्य, साध एवं साध्वियों की जीवन स्वयं के लिए नहीं, मानवता के सेवा में अपना प्रणाम निवेदन करते हैं। लिए उन्होंने जिया । जिन्होंने उन्हें देखा -द्वारका प्रसाद पाटोदिया, उदयपुर और उनका सान्निध्य प्राप्त किया, वे तो उनसे प्रेरणा प्राप्त करते ही हैं, परन्तु भावी पतितों-दुखियारों के परमसखा । पीढ़ियाँ भी उस प्रेरणामृत का पान करके लाभान्वित हों, इस दृष्टि से विशेषांक का यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि प्रकाशन सफल और यशस्वी हो। समन्वय के महान् प्रेरक जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की जन्म-शताब्दी -सुन्दरलाल पटवा, मन्दसौर मना रहे हैं। एकता-संवेदना-करुणा की त्रिवेणी महाराजश्री का जीवन एकता, मैत्री, जैन दिवाकर पूज्य मुनिश्री चौथमलजी शांति और वत्सलता की विजय का अपूर्व के दर्शनों का सौभाग्य तो मुझे नहीं मिला, शंखनाद था । वे पतितों-दुखियारों के किन्तु उनके कार्यों की सुवास एवं साहित्यपरमसख। थे। उनका जीवन पढ़ कर हमें सौरभ से आकर्षित अवश्य रहा हूँ। जैन मार्ग-दर्शन प्राप्त होगा। मैं हार्दिक सफलता एकता, मानवीय संवेदना और प्राणिमात्र के चाहता हूँ। प्रति करुणा की त्रिवेणी उनके जीवन में थी। -प्रतापसिंह बेद, बम्बई ऐसे मनीषी की जन्म-शताब्दी का वात्सल्य के प्रतीक आयोजन कर निःसंदेह प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है। 'तीर्थकर' का विशेषांक उनके दिल्ली में मुनिश्री चौथमलजी महाराज व्यक्तित्व और कर्त त्व से पूरित होगा, के चातुर्मास हुए। उस समय उनके कई जिसके माध्यम से लाखों लोग प्रेरणा प्राप्त बार प्रवचन सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। करेंगे। उनकी वाणी द्वारा भगवान् महावीर के मुख्य-मुख्य आदर्श की व्याख्या सुनने को मैं विशेषांक की सफलता और पूरे मिली । उनके व्याख्यान ओजस्वी और वर्ष के शताब्दी-कार्यक्रमों की सर्वांगीण चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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