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________________ युग तक भावी प्रजा अपने आराध्य की अविस्मरणीय जीवन-स्मृति में सहज श्रद्धा सुमन अर्पण करती रहेगी और यथाप्रसंग अपने मन, वाणी तथा कर्म को ज्योतिर्मय बनाती रहेगी । जन्म-शताब्दी के मंगल प्रसंग पर उनके प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व एवं कृतित्व को शतशत वन्दन, अभिनन्दन ! - उपाध्याय अमरमुनि, वीरायतन, राजगृह ( बिहार ) जिनशासन के रत्न श्री जैन दिवाकरजी म. सा. की महानता को उनके बाद अब तक कोई नहीं छू सका । जिनशासन को ऐसा रत्न फिर नहीं मिला । - अम्बालालजी म., सेमल भव्यतम व्यक्तित्व स्वर्गीय परम श्रद्धेय श्री जैन दिवाकरजी म. सा. तात्कालिक जैन समाज में भव्यतम व्यक्तित्व के धनी थे। पिछले ५०० वर्षों में किसी भी अन्य जैन मुनि के मुकाबिले उन्होंने सर्वाधिक भारतीय जनजीवन को प्रभावित किया । आज भी लाखों जैनअजैनों के हृदय-पट पर उनका अद्भुत प्रभाव बना हुआ है। पिछले सौ वर्षों के भारत के श्रेष्ठतम व्यक्तियों के इतिहास में पूज्य जैन दिवाकरजी म. सा. का महान् जीवन स्वर्णिम अक्षरों से अंकित होगा । शताब्दी वर्ष के पवित्र अवसर पर मैं हार्दिक श्रद्धा समर्पित करता हूं । - सौभाग्यमुनि 'कुमुद', सेमल आत्मजागृति के उन्नायक अध्यात्म-जगत् के प्रकाश-पुंज जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म. सा. ने जन ७६ Jain Education International जन को ज्ञान - प्रकाश से आलोकित करने का प्रयत्न, वह भी लम्बे समय तक पादबिहार करते हुए अनेक प्रदेश, नगरों और गाँवों को पावन करते हुए किया। सद्विचार, भक्ति, वैराग्य भाव में लीन होने की अ. त्मजागृति पैदा की । ऐसी महान् आत्मा के प्रति मैं श्रद्धा व्यक्त करता हूँ । शताब्दी वर्ष धार्मिक, सद्कार्यों की रचनाओं के साथ सम्पन्न हो, ऐसी 'शुभकामना करता हूँ । - रतन मुनि, मलकापुर प्रेरक और सफल बनें जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराजजैसे महापुरुषों के पवित्र जीवन से प्रेरणा लेकर मानव अपने जन्म को कल्याणकारी व सफल बनाये, यही शुभकामना जन्मशताब्दी के पावन अवसर पर है । - बाबा बालमुकुन्द, इन्दौर जैन एकता के अग्रदूत भगवान् महावीर ने कहा है : 'सन्ति मग्गंच बुहए' । साधक तू भले कहीं पर विचरण कर, तेरा कर्तव्य है शान्ति मार्ग काही उपदेश देने का । ताकि आधिव्याधि-उपाधि से संत्रस्त प्राणी-भूतजीवसत्त्वों को कुछ राहत मिल सके । प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकर चौथमलजी म. सा. का बहुमुखी व्यक्तित्व भगवान् महावीर के उक्त उपदेश से आप्लावित था । वस्तुत: जिस गाँव-नगर और प्रान्त में आपने समस्त मानव समाज को अहिंसा के ध्वज के तले एकत्रित कर परम अमृतोपम शान्ति का ही सन्देश दिया था । फलतः जैन समाज ही नहीं, अपितु तत्कालीन इतर समाज ने भी आपके मण्डनात्मक उपदेशों को खुले दिल-दिमाग से स्वीकार किया और सभी ने गुरु-तुल्य मान कर आपका हार्दिक अभिनन्दन भी किया । For Personal & Private Use Only तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७ www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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