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अन्तिम कोटा - चातुर्मास में शान्ति और संगठन का प्रत्यक्ष दृश्य कार्यान्वित रूप में सामने आया । उन दिनों कोटा नगर में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म. मूर्तिपूजक आचार्य श्री आनन्दसागरजी म. तथा दिगम्बराचार्य श्री सूर्यसागरजी म. चातुर्मास बिता रहे थे। तीनों महामुनि एक व्यासपीठ पर बैठकर धर्मोपदेश प्रदान करें । तदनुसार त्रिवेणी संगम का श्लाघनीय दृश्य उपस्थित करने का सारा श्रेय जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म. को था । जिनकी विराट् भावना ने और ओजस्वी वाणी की ललकार ने जैन इतिहास में प्रगति युग का निर्माण कर आनेवाले समाज को यह सिखा दिया कि भविष्य में शान्ति और संगठन में ही सामाजिक जीवन का अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है ।
इन शब्दों के साथ मैं दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ । - सुरेश मुनि, मन्दसौर हार्दिक शुभकामनाएँ
मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि आप श्री जैन दिवाकर जन्म-शताब्दी समारोह आगामी दिनांक २३ नवम्बर, १९७७ से मनाने जा रहे हैं। इस उपलक्ष्य में मासिक पत्रिका 'तीर्थंकर' का एक विशेषांक निकालने का निश्चय किया गया है। मैं आपके इस आयोजन तथा विशेषांक की सफलता के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ भेजता हूँ ।
- ब. दा. जत्ती, नई दिल्ली ( उप राष्ट्रपति, भारत) महान् साधक और संत को श्रद्धांजलि
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि २३ नवम्बर से देशभर में जैन दिवाकर मुनि श्री चौथमलजी महाराज की जन्म-शताब्दी मनायी जा रही है । इस अवसर पर मासिकपत्र 'तीर्थंकर' का एक विशेषांक डा.
चौ. ज. श. अंक
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नेमीचन्द के संपादन में प्रकाशित किया जा रहा है । इस विशेषांक में मुनिश्री चौथमलजी के जीवन और कृतित्व पर विशद सामग्री का समावेश किया जाएगा।
मैं उस महान साधक और जैन संत को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और आशा करता हूँ कि आपका यह विशेषांक जैन समाज और विशेषकर आज के युवा समाज को सद्कार्यों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देगा ।
मेरी शुभकामनाएँ ।
- भैरोंसिंह शेखावत, जयपुर ( मुख्यमंत्री, राजस्थान) समन्वय के प्रेरक
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि समन्वय के प्रेरक जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की जन्म शताब्दी २३ नवम्बर, ७७ से प्रारंभ हो रही है और १३ महीनों का कार्यक्रम बना रहे हैं। 'तीर्थंकर' का विशेषांक भी प्रकाशित हो रहा है ।
महापुरुषों तथा त्यागी साधकों का गुणानुवाद भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है । उनके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का स्मरण करते हुए उनके बताये मार्ग पर चलने का सद्संकल्प करना शताब्दी की महत्त्व - पूर्ण उपलब्धि हो सकती है ।
मैं इस शुभ एवं प्रेरक आयोजन की सर्वांगीण सफलता की शुभकामना करता हूँ । - श्रेयांसप्रसाद जैन, बम्बई
हार्दिक प्रसन्नता
जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी की जन्म-शताब्दी के उपलक्ष्य में 'तीर्थंकर' पुनः एक भव्य मननीय संकलनीय विशेषांक प्रकाशित कर रहा है, यह अवगत कर हार्दिक प्रसन्नता हुई ।
'तीर्थंकर' का प्रत्येक अंक ही पठनीय विशेषांक सदृश होता है । निश्चय ही
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