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लावणी : सास-बहू-संवाद
(तर्ज : ख्याल)
बचन ये सत्य हमारा मान, जैन धर्म झूठा मत कर तान ।।टेर।। जैन धर्म है नास्तिक जग में, बोले केइ इन्सान । दया दान ईश्वर नहीं माने ये नास्तिक पहचान ॥१॥ जगत् में जैन धर्म परधान, सासुजी मत कर खेंचातान ।।टेर।। जैन धर्म की निन्दा सासु, मुझ से सुनी न जावे । ईश्वर भक्ति दया दान सत जैन धर्म समझावे ॥२॥ मैं समझी थी बाली भोली, तूं निकली होशियार। करे सामना उत्तर देवे, शर्म न रक्खें लगार ।।३।। सुनी सुनी बातों पर सासु, दिया आपने कान । जैन धर्म तो पूरा आस्तिक माने है भगवान ॥४॥ बांध मुखपत्ति करे सामायिक, राखे पुजनी पास। बात बहु आच्छी नहीं लागे, आवे मुझने हास ।।५।। जीव दया हित बांधु मुखपत्ति, राखुं पुंजनी पास। जो नहीं करे सामायिक सासू, वो भोगे यम त्रास ।।६।। जैन धर्म के साधु तेरे, मुझे पसंद नहीं आवे । मुख पर बांधे सदा मुखपत्ति, मांग मांग कर खावे ॥७॥ जैन धर्म के मुनि जक्त में, होते हैं गुणवान । कनक कामिनी के त्यागी हैं, नशा पत्ता पछखान ।।८।। डीगा नहीं सक्ता है देवता, जो दृढ़ धर्म के माईं । चौथमल कहे सुभद्रा ने, सासू को समझाई ॥९॥
(लावणी-संग्रह ८, १९६३ ई.)
चौ ज. श. अंक
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