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॥श्री कृष्ण जन्म ॥
ढाल : श्री वृष्ण मुरारी, प्रकटे अवतारी यादव वंश में ।।टेक।। गिरी सामने गज का देखो, उतर जाय अभिमान ।
चन्द्र चाँदनी वहाँ तक रहती, जब लग उके न भान हो ॥९६३।। मेंडक फिरे फदकता जब तक, सर्प नजर नहीं आवे । शेर न देखे वहाँ तक मृगला, उछल फान्द लगावे हो ।।९६४।। जो ऊगे सो अस्त होय, और फूले सो कुम्हलाय । हर्ष शोक का जोड़ा जग में, देखत बय पलटाय हो ।।९६५।। पतिव्रता बालक और मुनिवर, जो कुछ शब्द उचारे । वाक्य इन्होंके निष्फल ना हों, जाने हैं जन सारे हो ।।९६६।। सज्जनों का दुख हरण करन को, हरी आप प्रकटावे। अधिक रवि की गरमी हो तब, मेघ वारी वर्षावे हो ।।९६७।। हरि देवकी के उर आये, स्वपना सात दिखावे । सिंह, सूर्य, गज, ध्वज, विमान, सर, अनल शिख। दरसावे हो ।।९६८।। चवा स्वर्ग से गंगदत्त का, जीव गर्भ में आया । स्वप्नों का हाल रानी ने सारा, पति को आन सुनाया ॥९६९।। कहे देवकी बसुदेव से, तुमने सुत मरवाया । जोर चला नहीं जरा इसी में, जीव बहुत दुख पाया हो ।।९७०।। बिना पुत्र सारा घर सूना, जैसे नमक बिन भात । पशु पक्षी बच्चों को पाकर, वे भी मन हर्षात हो ।।९७१।। इस बालक को आप बचा लो, रहेगा नाम तुमारो । स्वप्ने के अनुसार नाथजी, क्या नहीं हृदय विचारो हो ॥९७२।। नन्द अहीर की नार यशोदा, एक दिन मिलने आई। अपनी बीतक बात देवकी उसको सभी सुनाई ॥९७३॥
. ('भगवान नेमिनाथ और पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र'
चरित-काव्य के कुछ अंश, पृ. ६०; १९७० ई.)
तीर्थकर : नव. दिस. १९७७
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