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इसी प्रकार काने को काना न कहे, नपुंसक को नपुंसक न कहे, व्याधिवाले को रोगी न कहे और चोर को चोर न कहे। अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अंतरा। पिट्ठिमंसं न खाएज्जा, मायामोसं विवज्जए ॥ वार्तालापरत मनुष्यों के बीच बिना पूछे नहीं बोलना चाहिये, चुगली नहीं खानी चाहिये और । माया-मृषा का त्याग करना चाहिये ।
किण्हा नीता य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाइं तु जहक्कम ॥ लेश्याओं के यथाक्रम नाम इस प्रकार हैं - कृष्ण, नील, कापोती, तेजो, पद्म और शुक्ल।
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कोहो अ माणो अ अणिग्गहीया, माया य लोभो अ पवड्ढमाणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुण्णब्भवस्स ॥ निग्रह न किया हुआ क्रोध और मान तथा बढ़ती हुई माया और बढ़ता हुआ लोभ, ये सब पुनर्जन्म के मूलों को हराभरा करते हैं, उन्हें सींचते हैं । पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुणं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे॥ शालि, यव और पशुओं के साथ सोने से पूरी भरी हुई पृथ्वी एक मनुष्य की भी तृष्णा शान्त नहीं कर सकती, ऐसा जानकर तपश्चरण करना चाहिये।
१४ डहरा बुड्ढा य पासह, गब्भत्था वि चयंति माणवा। सेणं जह वट्टयं हरे, एवमाउखयम्मि तुट्टई ॥ बालक, वृद्ध और यहाँ तक कि गर्भस्थ मनुष्य भी अपने जीवन को त्याग देते हैं, इस सत्य को देखो; जैसे बाज पक्षी तीतर को मार डालता है, उसी प्रकार आयु का क्षय होने परमनुष्य का जीवन समाप्त हो जाता है ।
चौ. ज. श. अंक
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