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प्रभावशाली था कि वहीं खड़े रह गये। व्याख्यान समाप्त हुआ तब वहाँ से चले। अमरचन्द के कानों में दिन भर गुरुदेव के शब्द गूंजते रहे। वह दूसरे दिन भी व्याख्यान सुनने जा पहुँचा। उसके हृदय में मांस-मदिरा-त्याग की इच्छा जागृत हुई। उसे इन वस्तुओं में दोष ही दोष नजर आने लगे। तीसरे दिन के व्याख्यान में तो उसकी त्याग-भावना तीव्रतर हो गयी। उसने गुरुदेव के समक्ष माँस-मदिरा और जीवहिंसा के त्याग की आजन्म प्रतिज्ञा ले ली।
प्रतिज्ञा लेकर अमरचन्द घर पहुँचा । उसके मुख पर आत्मसंतोष झलक रहा था। भाइयों ने पूछा तो उसने प्रतिज्ञा लेने की बात बतायी। भाइयों के हृदय में भी सद्बुद्धि जागी। दूसरे दिन कस्तूरचन्द और तेजमल ने भी माँस-मदिरा और जीवहिंसा-त्याग की प्रतिज्ञाएँ ग्रहण कर ली।
गुरुदेव आस-पास के गाँवों में विहार हेतु गये तो उनके पीछे-पीछे तीनों भाई भी चले। वहाँ वे अन्य लोगों को माँस-मदिरा-त्याग की प्रेरणा देने में सहायक बने।
__गुरुदेव ने उनकी भावना देखकर नवकार मंत्र सिखाया। वे महामंत्र की माला फेरने लगे। अब वे नियमित रूप से जाप करते और अपनी प्रतिज्ञाओं का दृढ़तापूर्वक पालन करते।
प्रतिज्ञा की सच्ची कसौटी परीक्षा में होती है। जो प्रतिज्ञा लेता है उसे अग्नि-परीक्षा में में भी गजरना पड़ता है। कुछ ही दिनों में अमरचन्दभाई की परीक्षा का अवसर भी उपस्थित हो गया।
___गाँव में विवाह का प्रसंग उपस्थित हुआ। बिरादरी में - जाति में भोज था। अमरचन्द को भी निमंत्रित किया गया। अमरचन्द जानते थे कि जाति-भोज में मांस-मदिरा का दौर भी चलेगा। विकट परिस्थिति थी। जाति-भोज में सम्मिलित न हुए तो जाति से बहिष्कृत कर दिये जाएंगे और सम्मिलित हुए तो प्रतिज्ञा भंग हो जाएगी। बड़ी देर तक ऊहापोह करते रहे; अन्त में निश्चय किया – 'प्रतिज्ञा भंग नहीं करूँगा, चाहे बिरादरी से निकाल दिया जाऊँ। जाति क्या प्राण भी छूटे तो छुटे, पर प्रतिज्ञा नहीं टूटेगी।' उसने भोज में सम्मिलित न होने का निश्चय कर लिया।
___अमरचन्दभाई भोज में उपस्थित न हुए तो लोगों ने ताने कसे – 'अरे भाई ! अब तो वह जैन हो गया है; हमारी बिरादरी का न रहा।' दूसरे लोगों ने कह दिया-'जब हमारी बिरादरी में वह सम्मिलित नहीं होगा तो हम ही उसके यहाँ क्यों जाएँगे?' लोगों ने एक स्वर से कहा-'जाति' से बाहर निकाल देना चाहिये।' और अमरचन्दभाई जाति से बहिष्कृत कर दिये गये।
इस जाति-दण्ड को अमरचन्दभाई ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, किन्तु प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। वे अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग बने रहे।
तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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