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वाणी का जादूगर पूज्य श्री जैन दिवाकरजी को वाणी का जादूगर कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है; जिनकी वाणी सुनकर कुख्यात डाकू का हृदय-परिवर्तन हो गया। विज्ञापन और पर्चेबाजी के बिना ही हजारों की भीड़ जमा होने का अर्थ होता है, प्रवचन की पटुता । संप्रदायातीत वाणी को सुनकर जैनेतर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे । उनके व्याख्यान से ही गूढ़तम शंकाओं का समाधान सहज भाव से मिल जाता था । उनकी व्याख्यान-शैली से आगामिक गढ़ विषय भी सरल प्रतीत होने लगते थे। उनकी ओजस्वी वाणी दिवाकर-सदृश प्रखर जो थी !
- चन्दन मुनि त्रिवेणी का अपूर्व संगम जब दिगम्बर जैनाचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज का चातुर्मास कोटा में हो रहा था, तब जैन दिवाकर श्री चौथमलजी का चातुर्मास भी वहीं हो रहा था । आचार्य श्री आनन्दसागरजी भी वहीं बिराजमान थे। इस तरह वहाँ पावन त्रिवेणी का अपूर्व संगम था। श्री जैन दिवाकरजी ने एक ही मंच पर तीन धाराओं को एकत्रित कर अद्भुत कार्य किया था । जब तीनों आचार्य एक ही मंच पर बैठकर महोपदेश करते थे, तब समतासमन्वय का अनूठा दृश्य रहता था।
मैं भी नवाई के करीब २५ प्रतिष्ठित महानुभावों को लेकर कोटा पहुँचा था। मेरी उनसे चर्चा भी हुई, उस समय उन्होंने कहा, 'शास्त्रीजी, यह कार्य बहुत देरी से हुआ है। ऐसे शुभ कार्य तो बहुत पहले हो जाने चाहिये थे'। ___संक्षेप में, श्री जैन दिवाकरजी प्रभावक संत, समता के धनी, समन्वयात्मक भावना के प्रतीक थे। मानवों में मानवता पैदा करने की उनकी प्रबल भावना थी । उनकी वक्तृत्व-कला सीधी, साफ, सरल और प्रभावक थी।
0 पं. राजकुमार शास्त्री, नवाई
'आग से आग शान्त नहीं होती, खून से खून साफ नहीं होता, क्रोध से क्रोध शान्त नहीं होता। आग को शान्त करने के लिए, खून को धोने के लिए पानी की आवश्यकता है। क्रोध को उपशान्त करने के लिए क्षमा चाहिये।
___ 'जैसे सोने वाले को धीरे-धीरे क्रम से ज्ञान होता है, उसी प्रकार जागने वाले को भी इसी क्रम से ज्ञान होता है। सोने और जागनेवाले में अन्तर यही है कि जागने वाले को झटपट ज्ञान हो जाता है और सोने वाले को धीरे-धीरे।
-मुनि चौथमल चौ. ज. श. अंक ..
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