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. कर्त्तव्य में कठोर स्व. गुरुदेव चौथमलजी महाराज के जीवन में सरलता; मुखमण्डल पर सतत, अदृप्त-अपराजित आध्यात्मिक मुस्कराहट, शान्ति और समभाव; वाणी में जादू-सा आकर्षण, और कर्त्तव्य-पालन में आश्चर्य में डाल देनेवाली कठोरता थी, इसीलिए अनेक मुमुक्ष आत्माएँ उनके पुण्य संपर्क में आकर संसार-सागर से तिर गयीं। जो भी उनके पावन प्रवचन एक बार सुन लेता था, उसके जीवन की काया ही पलट जाती थी। मुझे उन्हें सुनने का एक बार सौभाग्य मिला, तब मैं किशोर थी। मेरी सुप्तात्मा ने अंगड़ाई ली । प्रवचन ने मुझे अभिभूत किया । माँ से मन की बात कही। वे पहले ही भीतर-ही-भीतर इस ओर अपना कदम उठा चुकी थीं। दोनों सहमत हुयीं और निर्ग्रन्थ मार्ग पर चल पड़ी । यह सब उन्हीं का प्रताप था । वे अपूर्व गुणों के अपूर्व भाण्डार थे। उन्हें नमन !
-साध्वी मदनकुंवर
उनकी पावन स्मृति उनकी पुनीत स्मृतियाँ आज भी लोकहृदय पर विद्यमान हैं । वे तप और संयम की साकार प्रतिमा थे। उन्होंने क्या-क्या करिश्मे नहीं दिखाये । कइयों को डूबते से बचाया। वे अध्यात्म पुरुष थे। उनमें अतुलित बल था, वे परोपकारी संत और कर्मठ योगी थे। उन्हें मेरी अकिंचन वन्दना !
-साध्वी विजयकुंवर प्रेम के देवपुरुष गुरुदेव प्रेम के देवता थे। जैन समाज में व्याप्त फिरकापरस्ती के वे विरुद्ध थे, अतः उनका सारा प्रयास एकता स्थापित करने की ओर ही था। उन्हें जब भी, जहाँ भी अन्य सम्प्रदायों के मुनि-मनीषियों के साथ सहचिन्तन और व्याख्यान करने देने के अवसर मिले, वे प्रसन्नता के साथ वहाँ गये और ऐसे कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए। कोटा में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय के श्री आनन्दसागरजी, दिगम्बर संप्रदाय के आचार्य श्री सूर्यसागरजी के साथ संपूर्ण चातुर्मास में प्रत्येक रविवार को उन्होंने प्रवचन दिये। उन्होंने प्रेम का कोरा उपदेश ही नहीं दिया वरन् उसके अनुरूप बीसियों कार्य भी किये । रविवार उनके जीवन का एक भाग्यशाली वार था। उनका जन्म रवि को हुआ, दिवंगति रवि को हुई, दीक्षा रवि को हुई और अन्तिम प्रवचन भी रवि को ही हुआ । वे जैन दिवाकर थे। वे परम पुण्यवान संत पुरुष थे, उन्हें शतशः वन्दन !
-भगवती मुनि निर्मल'
विराट् योगी उनके महज्जीवन में सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् का आदर्श समन्वय था । वे सही अर्थों में श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान सूर्य थे; यथानाम तथागुण । 'निर्ग्रन्थ प्रवचन'
चौ. ज. श. अंक
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