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________________ २६ वन्दन, अभिवन्दन ! वन्दन, शतशत वन्दन, अभिनन्दन ! जैन जगत् के पूज्य दिवाकर / जैन दिवाकर तुम जन्मे | भू का उतरा भार / हुआ पाखण्ड अनावृत मेद-भाव के टूटे बंधन | हटी ज्ञान पर छायी कालिख अरुणोदय सम्यवत्व उषा का | मिथ्यात्व तिमिस्रा हुई तिरोहित संकल्प तुम्हारा | भव-मुक्ति का / बन्दीगृह भी रोक न पाया रोक न पायी गृह-दीवारें | रोक न पाया प्रणय-पाश भी । तुम बढ़े / गतिशील हुआ संकल्प | सिमटी सिंकुड़ी जिनवाणी | सह्य न हो पाया|घेरे को तोड़ निकाली / पहुँचायी जन-जन तक उसको हर्षित सारे / श्रेष्ठि-निर्धन | जनसाधारण | महल- अटारी कुटिया जर्जर जगवल्लभ | किये प्रहार | रूढ़ियों पर तुमने / जन-भाषा में बतलाया, समझाया सिखलाया | महावीर का / मंगलमय उपदेश सुनाया कितना अद्भुत ! जादू था वाणी में / जो भी आया | हो गया तुम्हारा कर गया समर्पित | कल्मष अपना / बदले में प्रतिदान प्राप्त कर धन्य हो गया / संयम, तप, सम्यक्त्व रत्न का, तुम तपे | तुम्हारा तप-तेज दिवाकर / कर गया तिरोहित अंधकार अज्ञान - निशा का / भूले-मटके गतिशील हुए / गतिशील हुआ | जन-जन का जीवन जीवन को तुमने बतलाया सत्य | सत्य को लक्ष्य, लक्ष्य को दी परिभाषा | जिनवाणी हो गयी निहाल तुम जिनवाणी के अद्भुत व्याख्याता | सर्वधर्म - समन्वय के सूत्रधार कवि | संत | महर्षि | वक्ता | उद्घोषक अनेकान्त के, संघ - ऐक्य के प्रबल प्रबोधक / करनी - कथनी की / एकरूपता जीवन का अवलम्ब तुम्हारा | जन्मशती पर | आज तुम्हारा | जैन दिवाकर | वन्दन | शतशत वन्दन |अभिवन्दन । Jain Education International विपिन जारोली तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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