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बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो प्रत्येक विषय पर तर्क-वितर्क करने को तैयार रहते हैं और उनकी बातों से ज्ञात होता है कि वे विविध विषयों के वेत्ता हैं, मगर आश्चर्य यह देखकर होता है कि अपने आन्तरिक जीवन के संबन्ध में वे एकदम अनभिज्ञ हैं। वे 'दिया-तले अंधेरा' की कहावत चरितार्थ करते हैं । आँख दूसरों को देखती है, अपनेआपको नहीं देखती । इसी प्रकार वे लोग भी सारी सृष्टि के रहस्यों पर तो बहस ।
कर सकते हैं, मगर अपने को नहीं जानते । | न्यावर, ८ सित. १९४१ -मुनिधी चौथमलजी म.
प्रवचन-अणियाँ
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