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________________ जैन दिवाकर : एक विलक्षण व्यक्तित्व "वे गुत्थियों को और अधिक उलझाना नहीं वरन् सरल-सहज मुद्रा में सुलझाना जानते थे। दो भिन्न तटों पर खड़े व्यक्तियों के बीच उनके प्रवचन मित्रता और एकता के सेतु होते थे; वस्तुतः वे कैंची नहीं सूई थे, जिनमें चुभन थी किन्तु दो फटे दिलों को जोड़ने की अपूर्व क्षमता थी। उनके प्रवचन सरल, सरस, सुबोध, सुलझे हुए और अध्ययनपूर्ण होते थे, जिनमें वैचारिक निर्मलता के साथ अनुभूति का अमृत भी मिला होता था। छोटेछोटे तराशे हुए रूपक, लोककथाएँ, दोहे, शेर, श्लोक, आगम-गाथाएँ और भजन की स्वर-लहरी सब विषय-वस्तु को इतना सुबोध-सहज बना देते थे कि श्रोता आत्मविभोर हो उठता था। - देवेन्द्र मुनि शास्त्री जैन दिवाकर स्व. श्री चौथमलजी महाराज स्थानकवासी जैन परम्परा के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। वे बीसवीं सदी के एक प्रतिभासम्पन्न साधक थे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी था। एक ओर जहाँ वे अध्यात्म-साधना में तल्लीन रहते थे, दूसरी ओर वहीं समाज का कुशल नेतृत्व भी करते थे। तीसरी ओर वे जन-जन की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में तत्पर-सन्नद्ध थे तो चौथी ओर अध्ययन-अध्यापन-प्रवचन में पटु थे। वे कविता लिखते थे, लेख लिखते थे, जनता-जनार्दन से बातचीत करते थे, किन्तु आत्मा की अनन्त-अतल गहराइयों में घूमते-झूमते रहते थे। पनिहारिन का ध्यान जैसे घड़े में, नट का नृत्य करते हुए रस्सी में, और पत्नी का अन्यान्य गार्ह स्थिक कार्य करते हुए भी अपने प्रियतम में बना रहता है ठीक वैसे ही उनका ध्यान आत्मा में अनवरत बना रहता था। _मैंने उनके सर्वप्रथम दर्शन अपनी जन्मस्थली उदयपुर में किये। उस वर्ष उनका वर्षावास' वहीं था। पंचायती नोहरे के विशाल प्रांगण में उनके मर्मस्पशी प्रवचन होते थे, जिनमें हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख पारसी, जैन-वैष्णव-शैव सभी हजारों की संख्या में उपस्थित होते थे। विशाल काया, प्रशस्त ललाट, उन्नत शीर्ष, ओजस्ववर्चस्व-निर्मित पेशिल' भुजाएँ, प्रेम-पीयूष बरसाते निर्मल नेत्र, श्वेत परिधान-वेष्टित शरीर और मुखचन्द्र पर शोभित मुखवस्त्रिका देखकर दर्शक प्रथम दर्शन में ही उनसे प्रभावित हो जाता था और जब उनकी मेघ-मन्द्र गर्जना सुनता था तो उसका मन-मयूर नाच उठता था । चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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