________________ इन्दौर डो. एन./६२ म. प्र. लाइसेन्स नं एल-६२ नव.-दिस. 1977 (पहले से डाक-व्यय चुकाये बिना भेजने की स्वीकृति प्राप्त) शाल, एरण्ड : आचार्य, शिष्य - वृक्ष चार प्रकार के हैं 1. एक शाल वृक्ष है और अपने समान विशाल वृक्षों से परिवृत है; 2. एक वृक्ष शालवृक्ष की भाँति महान् है, किन्तु एरण्ड समान तुच्छ वक्षों से घिरा हुआ है। 3. एक वृक्ष एरण्ड के समान तुच्छ है, किन्तु शालवृक्षों की भाँति के महान् वृक्षों से परिवृत है; 4. एक वृक्ष एरण्ड की तरह महत्त्वहीन है और ऐसे ही महत्त्वहीन ___वृक्षों से घिरा हुआ है। / इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के हैं - 1. एक आचार्य शालवृक्ष के समान महान् उत्तम गुणों से युक्त है और शाल-परिवार के समान ही श्रेष्ठ शिष्य-परिक र से युक्त है; 2. एक आचार्य शालवृक्ष की भाँति महान् उत्तम गुणों से युक्त तो है, किन्तु एरण्ड समान महत्त्वहीन कनिष्ठ शिष्य-समूह से घिरा हुआ है। 3. एक आचार्य एरण्ड समान कनिष्ठ है, किन्तु शालवृक्ष जैसे उत्तम गुण-संपन्न शिष्य-परिकर से परिवृत है; 4. एक आचार्य एरण्ड की भाँति है और एरण्ड समूह जैसे कनिष्ठ शिष्य परिवार से घिरा हुआ है। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (राजस्थान ) द्वारा प्रचारित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org