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________________ विधिना तेरी गति लखि न परे : श्रीचन्द सन्त-साहित्य और जैन अपभ्रंश-काव्य : जैन (समीक्षा), अक्टूबर-नवम्बर, पृ. ६७ डा. राममूर्ति त्रिपाठी, जून-जुलाई, पृ. १८९ विश्वपुरुष राजेन्द्रसूरि : संपादकीय, संतोष ही कल्पवृक्ष (दृष्टान्त-कथा): जून-जुलाई, पृ. ७ श्रीमद् राजचन्द, मार्च, पृ. २९ वीरेन्द्रकुमार जैन : कुछ क्षेत्र में ही संदर्भ : तीर्थंकर महावीर (तीन नवमुझे वृन्दावन दिया गया · · · : राम- गीत): नईम, अक्टूबर-नवम्बर, पृ. १४ । नारायण उपाध्याय, मई, पृ. २१ सिन्दूर-प्रकर : सोमप्रभाचार्य, (समीक्षा), वैराग्य : एक चिन्तन : डा. नेमीचन्द जनवरी, पृ. ३१ जैन, मार्च, पृ. २३ संपूर्ण राजेन्द्रसूरि-वाङमय : जूनशक्तिपुञ्ज 'अम्माजी' : नीरज जैन, जुलाई, पृ. ४३ अगस्त, पृ. २५ सम्यक्त्व : श्रेष्ठताओं का सिंहद्वार : ___ शब्द और भाषाः उपाध्याय मुनि भगवान् महावीर ने कहा था, सितम्बर, विद्यानन्द : जून-जुलाई, पृ. ११७ आवरण-पृ. ४ ___ शब्द तारे, शब्द सहारे (कविता): समझ की समस्या : संपादकीय, जनवरी भवानीप्रसाद मिश्र, जून-जुलाई, पृ. १२५ पृ. ५ शब्द-संयम : संपादकीय, अगस्त. समयसार : संपादकीय, फरवरी, पृ. ५ समणसुत्तं (श्रमणसूत्रम्) : (समीक्षा), श्रमण और ब्राह्मण : दलसुखभाई मई, पृ. २५ मालवनिया, जून-जुलाई, पृ. १६५ सहज श्रद्धा : डा. प्रेमसागर जैन, जूनश्रमण महावीर का तपस्या-काल : । जुलाई, पृ. १८१ वीरेन्द्रकुमार जैन, सितम्बर, पृ. १९ सापेक्षता : महावीर और आइन्स्टीन : श्रीमद् राजचन्द्र : एक रेखाचित्र : माणकचन्द कटारिया, मई, पृ. १२ गांधीजी, मार्च, पृ. २८ साहिर्षि श्री राजेन्द्रसूरि : मदनलाल श्रीमद् राजेन्द्रसूरि और पाँच तीर्थ, जोशी, जून-जुलाई, पृ. १०० जून-जुलाई, पृ. ९७ ___ स्त्रियाँ सीमित दायरे में ही क्यों ? : ___ श्रीमद् राजेन्द्रसूरि की क्रान्ति के विविध मा कटारिया, अक्टूबर-नवम्बर, पृ. ३२ पक्ष : 'प्रलयंकर', जून-जुलाई, पृ. ७१ स्वस्तिक की विकास-यात्रा : पद्मचन्द्र श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर की चुनी । ही शास्त्री, सितम्बर, पृ. ३५ ।। हुई सूक्तियाँ : जून-जुलाई, पृ. २७ - हम अनिकेतन अनिकेतन : सौभाग्यमल __ श्रीमद् राजेश्वरसूरि के पद : जन- जैन, (समीक्षा), मार्च, पृ. ४५ जुलाई, पृ. ११३ __हमारी कोश-परम्परा और 'अभिधान श्रीमद विजय राजेन्द्रसूरीश्वर के राजेन्द्र' : इन्द्रमल भगवानजी, जून-जुलाई, विविध स्थानीय मूर्ति-लेख : जून-जुलाई, पृ. १३२ पृ. १०७ ___ हिन्दू और जैन : परिपूर्णानन्द वर्मा, __ श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय आचार्य- जनवरी, पृ. १७ परम्परा : जून-जुलाई, पृ. १०५ हिंसा के नये औजार, जो दिखायी नहीं ___ सन्तन को कहा सीकरी सो काम : दे रहे : माणकचन्द कटारिया, अक्टूबरवीरेन्द्रकुमार जैन, दिसम्बर, पृ. २९ नवम्बर, पृ. ९ चौ. ज. श. अंक १८७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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