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'अभिधान-राजेन्द्र' कोण : कुछ विशेष- इतिहास-पुरुषों की श्रृंखला में महावीर : ताएँ : राजमल लोढा, जून-जुलाई, कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर; दिसम्बर, पृ. ९५
पृ. १५ ___'अभिधान राजेन्द्र' कोश : संदर्भ-ग्रन्थ ; ___ इम्तहान, रस-ग्रहण, संभावनाएँ, पछजून-जुलाई, पृ. १०५
ताना (बोध कविताएँ) : दिनकर सोनवर_ 'अभिधान-राजेन्द्र' : तथ्य और प्रशक्ति :
कर, जून-जुलाई, पृ. १४४ । मुनि जयप्रभविजय, जून-जुलाई, पृ. ५८
___एक अन्तिम पत्र अयोध्याप्रसाद गोयलीय
का - वीरेन्द्रकुमार जैन के नाम : अब भी गुलाम : संपादकीय, मई, पृ.७ जनवरी, प. २६
अहिंसा : आकाश-सी व्यापक : भगवान् एक नया मोर्चा : विक्रमकुमार जैन, महावीर ने कहा था, आवरण-पृ. ५ सितम्बर, पृ. ३३
आओ लड़ें : संपादकीय, अप्रैल, पृ. ७ और अब : संपादकीय, अक्टूबर-नवम्बर
आचार्य कुन्दकुन्द और शंकराचार्य : प. ५ श्यामनन्दन झा, अप्रैल, पृ. २३
कथनी अलग, करनी अलग (खिड़की : __ आदमी भूल गया प्यार, सहज संतुलन, पाठनीय मंच), अप्रैल, पृ. ३ संभावनाएँ, अकिचन, प्रार्थना के लिए, कम काम, कम दाम (बोधकथा) नेमीअकेलेपन का संगीत (बोधकविताएं): चन्द पटोरिया, अक्टबर-नवम्बर, आवरणदिनकर सोनवलकर, जनवरी, पृ. ९ __ आतुरजन, परितप्त होते हैं, करते हैं कम्युटिंग : शशिरंजन पांडेय, (समीक्षा), व्यर्थ ही (!) : भानीराम 'अग्निमुख', दिसम्बर, पृ. ४० फरवरी, पृ. २२
_ कल्पसूत्र : एक अध्ययन : डा. नेमीचन्द आत्मनिरीक्षण : उपलब्धियों के बीच जैन, जन-जलाई. प. ६३ (टिप्पणी) : फतहचन्द अजमेरा, अगस्त,
कविवर प्रमोदरुचि और उनका ऐति
हासिक "विनतिपत्र' : शा इन्द्रमल भगवानजी __ आत्मबोध (कविता) : रवीन्द्र पगारे,
जून-जुलाई, पृ. ४९ अगस्त, पृ. ३
कहाँ, किधर : संपादकीय, दिसम्बर, एक आत्मीय हस्ताक्षर, जो अब खतों पर नहीं होगा (रमा जैन) : डा. नेमीचन्द ' कहाँ से कहाँ तक' : मार्च, आवरणजैन, अगस्त, पृ. २३
पृ. २-३ आत्मशिल्प : सिक्के के दो पहलू : - काल-चक्र के तुरंग धावे (गीत) : डा. फरवरी, आवरण-पृ. ४
छैलबिहारी गुप्त, जून-जुलाई, पृ. १८० आरम्भिक जैनधर्म : पं. कैलाशचन्द्र जैन, कोलाहल (हिंसा के नये औजार-२) (समीक्षा), अक्टूबर-नवम्बर, पृ. ६८ माणकचन्द कटारिया, फरवरी, पृ. ७ ।
आरामदेह जिन्दगी का कूड़ा (हिंसा के क्रोध : किसिम-किसिम के, जनवरी, नये औजार-१) : माणकचन्द कटारिया, पृ. ३ । जनवरी, पृ. ११
- क्रोध : पाषाण/पृथ्वी/धूलि जल पर इकतारे पर अनहद राग (बोधकविता- खिंची रेखाएँ; अप्रैल-आवरण , पृ. ४ संग्रह) : दिनकर सोनवलकर, (समीक्षा), क्या बूढ़े होना अभिशाप है ? : परिपूर्णामार्च, पृ. ४४
नन्द वर्मा, मार्च, पृ. २७
चौ. ज. श. अंक
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