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तीर्थंकर :और तीन वर्षक(मई १९७५ से अप्रैल १९७७) वर्ष ४ (मई १९७४ से अप्रैल १९७५) आत्मज्ञान : एक समग्र समाधान : अकेली (कहानी) : कु. मयूरा शाह,
शाह जे. कृष्णमूर्ति, अगस्त, पृ.३ अक्टूबर, पृ.२९
आप निन्दा करते हैं, किसकी ? : अनाम (कविता) : कन्हैयालाल सेठिया, अगरचन्द नाहटा, अक्टूबर, पृ.२१ दिसम्बर, पृ.४
___ आहार; मनुष्य के लिए : मनुष्य, ___ अनुत्तर योगी : तीर्थंकर महावीर आहार के लिए : उपाध्याय' मुनि विद्यानन्द, (प्रथम खण्ड) : वीरेन्द्रकुमार जैन, जनवरी, पृ.१३ (समीक्षा), अप्रैल, पृ.३९
ईश्वर (कविता) : कन्हैयालाल अनेकान्त : डा. प्रभाकर माचके, फरवरी, सेठिया, मार्च, पृ.५
उजले पुरखे, मैले वंशधर : संपादकीय, अनेकान्त-आकाश-गंगा (कविता): नवम्बर, पृ.७ भवानीप्रसाद मिश्र, नवम्बर, पृ.१२
ऋषभदेव : एक परिशीलन (शोधअनेकान्तवाद : एक समीक्षात्मक प्रबंध) : देवेन्द्र मुनि शास्त्री, (समीक्षा), टिप्पणी : डा. आ. ने. उपाध्ये, मई, प.२३ माचे, पृ.३३
अन्धकप (धारावाहिक नाटक) एक द्रव्य : एक क्रिया : भगवान् महावीर राजेश जैन. मार्च, पृ.१९
ने कहा था, सितम्बर, आवरण-पृ.४ ___ अपग विचार ! (कविता) : कन्हैया- एक बार तो इन्सान इसे जान ले लाल सेठिया, फरवरी, पृ. ५ ।
(कविता) : मैकडोनाल व्हाइट, जून, अप्पदीपोभव ! (अनत्तर योगी: पृ.३४ तीर्थंकर महावीर-द्वितीय खण्ड का एक एक बुढ़िया और बाहबली (बोधअध्याय) : वीरेन्द्रकुमार जैन, अप्रैल. पृ. ८ कथा) : नेमीचन्द पटोरिया, मार्च, पृ.२८
अबोध (कविता) : कन्हैयालाल सेठिया, ओ वर्धमान ! (कविता) : डा. नवम्बर, पृ. ४७
प्रभाकर माचवे, दिसम्बर, पृ.५ __ अर्थवत्ता! पड़ी रही माटी, चला गयी 'ओम्' : एक ललित समीक्षण : महात्मा गागर (कविता) : कन्हैयालाल सेठिया, भगवानदीन, मई, पृ.१५ अप्रैल, पृ.४
___ कथाकोशः (आराधना-कथा-प्रबंध) : अहिंसा अर्थात् कायरता (?) : भानी- संपा. डा. आ. ने. उपाध्ये, (समीक्षा), राम ‘अग्निमुख', दिसम्बर, पृ.२४ मार्च, पृ.३२ __ आओ करें क्रोध : संपादकीय, मार्च, कर्मग्रंथ (प्रथम भाग) : देवेन्द्र सूरि,
(समीक्षा), मार्च, पृ.३३ आजकल के पण्डित (बोधकथा) : ___ कलम (काव्य) : कल्याणकुमार जैन नेमीचन्द पटोरिया, फरवरी, पृ.३ 'शशि', (समीक्षा), अगस्त, पृ.३१ __ आत्मचिन्तन (कविता) : योगेन्द्र ___ कहाँ से, कहाँ तक : जून, जुलाई, दिवाकर, अगस्त, पृ.१६
सितम्बर, आवरण-पृ.२-३ ___ आत्मजयी वर्द्धमान महावीर : सर्व- किताब खोलो (कविता) : सुरेश पल्ली राधाकृष्णन्, अप्रैल, पृ.१९ 'सरल', जुलाई, पृ.२४
चौ ज. श. अंक
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