________________
पृ.२९
किस संबोधन से पुकारूं तुम्हें (कविता) : जीवन-भाष्य :जे. कृष्णमूर्ति, (समीक्षा), मुनि रूपचन्द्र, जनवरी, पृ.२३
अगस्त, पृ.३० कुमुद की भाँति निर्लिप्त बन ! : जूझो : स्वयं में, स्वयं से : भगवान् भगवान् महावीर ने कहा था, दिसम्बर, महावीर ने कहा था, जून, आवरण-पृ.४ आवरण-पृ.४
जैन आचार्यों की सांस्कृतिक देन : डा. _ 'क्रोध' : डा. प्रभाकर माचवे, मार्च, विलास आदिनाथ सांगवे, जून, पृ.२५ । पृ.१३ * क्रोध : अपने को देखने के दौरान :
.. जैन दर्शन : राजनीति को परिशुद्ध करे वीरेन्द्रकुमार जैन, मार्च, पृ.१५
• (टिप्पणी) : 'रत्नेश' कुसुमाकर, जनवरी, क्यों करता है रोष : भगवान् महावीर ने
__ जैन दर्शन : मनन और मीमांसा : मुनि कहा था, मार्च, आवरण-पृ.४
नथमल, (समीक्षा), फरवरी, पृ.३३ __ खराद (मुक्तक) : कल्याणकुमार जैन
जैनधर्म : पं. नाथूराम डोंगरीय जैन, 'शशि', (समीक्षा), मार्च, पृ.३३
(समीक्षा), अप्रैल, पृ.४३ गीता में निर्वाण : श्री अरविन्द, नवम्बर
जैनधर्म : रतनचन्द जैन, (समीक्षा) : आवरण-पृ.२-३ ___ चन्द्रवाड़-भूगर्भ से बोलता एक नगर :
जुलाई, पृ.३२ जयकुमार जैन, अक्टूबर, पृ.२६
जैनधर्म का मौलिक इतिहास (द्वितीय चपल मन का मृग बिंघे (गीत) :
खण्ड) : आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज,
(समीक्षा), जनवरी, पृ.३२ कन्हैयालाल सेठिया, जून, पृ.१४ __ चलो तो मंजिल आ जाए : माणकचन्द
जैन महावीर, मेरे महावीर : वीरेन्द्र
कुमार जैन, नवम्बर, पृ.२३ कटारिया, मार्च, पृ.८ ___ चार बोध कविताएँ : दिनकर सोनवलकर,
___ जैन मूर्तिकला-विचार और निखार
और : अगरचन्द नाहटा, जून, पृ.३१ नवम्बर, प.३
चाह गयी, चिन्ता मिटी (बोधकथा) : जैन लक्षणावली : संपा. बालचन्द्र नेमीचन्द पटोरिया, जुलाई पृ.२३ ।।
सिद्धान्तशास्त्री, (समीक्षा), जुलाई, चाहे जो कुछ हो (बोधकथा) : नेमीचन्द पृ.३१ पटोरिया, मई, आवरण-पृ.२
__ जैसे अन्धे को प्रकाश, वैसे प्रज्ञाहीन को छोडें : भषण के साथ दुषण, वसन के शास्त्र :भगवान् महावीर ने कहा था, अगस्त, साथ वासना (बोधकथा) : नेमीचन्द्र आवरण-पृ.४ पटोरिया, अगस्त, पृ.१७
___ जोड़ें; किन्तु जुड़ें भी : संपादकीय, __ जियें या जूझें : विरोधाभासों से जनवरी, पृ.६ (टिप्पणी) : गुलाबचन्द जैन, जनवरी, ज्ञान में सुख, अज्ञान में दुःख (बोधपृ.२५
कथा); नेमीचन्द पटोरिया, नवम्बर, जियो, जीने दो : संपादकीय, दिसम्बर, पृ.१६
तार झनझना उठे. भलाई के लिए " जीवन एक बन्द पुस्तक ! : माणकचन्द (बोधक) : देवेन्द्र मुनि शास्त्री, फरवरी, कटारिया, जुलाई, पृ.८ ___ जीवन की अवधि (कविता): भवानी- तीन छोटी कविताएँ : डा. श्यामसुन्दर प्रसाद मिश्र, सितम्बर, पृ.५
घोष, अक्टूबर, पृ.५
पृ.७
१७८
तीर्थकर : नव. दिस. १९७७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org