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प्रकाश स्तम्भ
वैसे तो आजकल चाहे जिस ग्रन्थ के विषय में 'संग्रहणीय' लिख देते हैं । पर 'तीर्थंकर' के विशेषांकों की परम्परा में यह (भी) एक सार्थक, सोद्देश्य और संग्रहणीय ग्रन्थ बनाया गया है । आपका श्रम आगामी कई पीढ़ियों को प्रकाश-स्तम्भ-सा मार्गदर्शन कराता रहेगा । - सुरेश 'सरल', जबलपुर उपयोगिता अपरिहार्य
विशेषांक देखकर मन प्रसन्न हो उठा । भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में आप का यह अथक परिश्रम अविस्मरणीय रहेगा। शोध के क्षेत्र में इस सन्दर्भ ग्रन्थ की उपयोगिता अपरिहार्य है ।
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श्रीमती रमारानी स्मृति खण्ड भी कई पक्ष उजागर करता है उनके व्यक्तित्व के । उनको समर्पित एक स्मृति ग्रन्थ ही निकलता चाहिये, प्रारूप उसका नयापन लिये हो । पुनः बधाई इस अनुष्ठान की सम्पूर्ति के लिए । -डा. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर अद्भुत - असाधारण
विशेषांक अद्भुत है, असाधारण है । प्रत्येक पृष्ठ संग्रहणीय है । आप में संपादन की अनूठी क्षमता और सूझबूझ है । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
- कन्हैयालाल सेठिया, कलकत्ता आशातीत उपलब्धि विशेषांक में सामग्री का संयोजन अद्भुत है । इतने अच्छे अंक की आशा नहीं की जा सकती थी । पर आशा से बहुत ऊपर की उपलब्धि हुई है । मैं तो प्रसन्नता से गद्गद हो गया । बहुत-बहुत बधाइयाँ !!
- बालचन्द्र जैन, जबलपुर अनुप्रेक्ष्य स्थान
विशेषांक देखकर हृदय गद्गद हो उठा । उसे पढ़कर लगा कि एक सही और सफल पत्रकार ने जैन पत्र-पत्रिकाओं को समाचार -
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पत्र - जगत् में अनुप्रेक्ष्य स्थान बना दिया है । इस श्रम-साध्य कार्य में आपने अपने ललाट से कितना पसीना बहाया होगा, यह सहज अनुमेय है । आपकी कर्मठ क्रियाशीलता अविस्मरणीय है । पुण्यशीला स्व. रमाजी की भी स्मृतियाँ आपने इसी में संजो दी हैं । धर्म, साहित्य और समाज की उन्नति तथा प्रचार-प्रसार में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान
कौन भूल सकता है । आपने उसे तारोताजा कर दिया । इस सब के लिए आपको बधाइयाँ !
-डा. भागचन्द्र जैन 'भास्कर', नागपुर संपादन- कलाकी ऊँचाइयों को छूनेवाला विशेषांक क्रम क्रम पढ़ा । इसके उत्तरार्ध में छपी श्रीमती रमा जैन- स्मृतिपूर्तिवाली सामग्री और परिशिष्ट के रूप में दी गयी सारी सामग्री मैंने विशेष रुचि के साथ पढ़ी। जैन पत्र-पत्रिकाओं से संबन्धित सामग्री का भी अधिकांश पढ़ा । अपने इस विशेषांक के रूप में 'तीर्थंकर' ने संपादनकला की जिन ऊँचाइयों को छुआ है, उसके लिए मैं समूचे 'तीर्थंकर' - परिवार का और उसके संपादक - मण्डल का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ और परम मंगलमय परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि भारत के पत्र- जगत् में 'तीर्थंकर' अपनी उज्ज्वल प्रखर सेवा द्वारा अद्वितीय बनता चला जाए ।
- काशिनाथ त्रिवेदी, इन्दौर सर्वप्रथम साहसिक प्रयास
विशेषांक को गहराई से पढ़ा । यह मेरे ख़याल से भारत में पहला प्रयास 'तीर्थंकर' के माध्यम से आपने किया होगा । आपके इस साहसिक प्रयास के लिए किन शब्दों में अभिनन्दन करूँ ? 'तीर्थंकर' ने पाठकों
ज्ञान में वृद्धि ही नहीं की, किन्तु व्यापकता का भी अध्ययन के लिए समय-समय पर अवसर दिया ।
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- मानव मुनि, इन्दौर
तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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