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________________ संवरण न कर सका । जब तक उसे न पढ़ा, परिचय क्या आत्मपरिचय ही दे डाला है। तक तक चैन न पड़ा । प्रत्येक पृष्ठ पर पर वह ऐसा नहीं , जो पाठकों को आकर्षित आपकी प्रतापपूर्ण प्रतिभा झलक रही है। न करें। आप इतना बढ़िया लिखते हैं और इतना -डा. दरबारीलाल कोठिया, वाराणसी सुन्दर संपादन करते हैं कि पाठक को वह चुम्बक की तरह आकर्षित कर लेता है। उत्कर्षांक कई बार आपकी संपादन-कला को देखकर विशेषांक अपनी पूर्व परम्परा में एक मन में विचार आता है कि मैं भी इतना उत्कर्ष चिह्न है। संपादकीय 'बाद | एक सुन्दर संपादन कर पाता तो कितना अच्छा सदी के' हमें विशेषांक का सार प्रदान करता होता । वस्तुतः आपकी कलम में जादू है। है। इसमें जैन पत्र-पत्रिकाओं का एक सदी इतने श्रेष्ठ विशेषांक के लिए मेरे हृदय के का शोधपूर्ण सिंहावलोकन है। अन्य लेखों में कोटि-कोटि साधुवाद स्वीकार करें। माणकचन्द कटारिया की परिचर्चा उस -देवेन्द्र मुनि शास्त्री, बंगलोर भूमिका को प्रस्तुत करती है, जो हमें प्राप्त करनी है। चिरस्मरणीय इस विशेषांक में 'रमा जैन स्मृति पूर्ति' विशेषांक देख और पढ़कर आपकी अंश भी एक श्रद्धांजलिपूर्ण अभिनन्दन-ग्रन्थ सफलता के लिए बधाई भेजता हूँ। यह अंक का रूप प्रस्तुत करता है। विशेषांक का एक संदर्भ ग्रन्थ के रूप में अपनी उपयोगिता परिशिष्ट अपनी निराली शान के साथ के लिए हमेशा याद किया जायेगा। कृतिकार यशस्वी संपादकों को एक भाव -सुबोधकुमार जैन, आरा भीनी श्रद्धांजलि है । 'तीर्थंकर' के इस सुपाठ्य सामग्री से भरपूर उत्कर्षांक के लिए बधाई ! __-डा. जयकिशनप्रसाद खंडेलवाल, आगरा विशेषांक बहुत सुन्दर बन पड़ा है । पढ़ने योग्य बहुत सामग्री है । प्रयास सफल महान और अनुपम देन रहा है। _ विशेषांक तो आपकी एक महान् व ___ -सतीश जैन, दिल्ली अनुपम देन है । 'जैन पत्र-पत्रिका-प्रदर्शनी' मील का पत्थर का आयोजन मुख्यतः उसी से प्रेरित है। विशेषांक देख कर और आपके संपादकीय आप ही इस आयोजन के प्रमुख प्रेरक हैं। के अलावा उसके अनेक लेख पढ़ कर हार्दिक -रामस्वरूप गर्ग, पत्रकार; लाडनूं प्रसन्नता हुई । अंक के साथ बहुत परिश्रम आपने किया है और कहाँ-कहाँ से सामग्री बड़ा उपादेय कार्य जुटाई है। यह अंक संग्रहणीय ही नहीं किन्तु विशेषांक में आपने बड़े परिश्रम से पत्रजैन पत्र-पत्रिकाओं के इतिहास को लिखने पत्रिकाओं से संबन्धित सामग्री संकलित कर के लिए मील के पत्थर का काम देगा। वड़ा उपादेय कार्य किया है। उसके लिए विभिन्न स्थानों, विभिन्न कालों, विभिन्न मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये । यह परिस्थितियों और विभिन्न भाषाओं में अंक सब के लिए लाभदायक और संग्रहप्रकाशित इतने पत्र-पत्रिकाओं का संकलन- णीय है। इसके द्वारा एक स्थायी रूप से पत्रपरिचय और सुधरी भाषा का प्रयोग एवं पत्रिकाओं संबन्धी जानकारी सब के लिए एक-सी धारा सभी स्तुत्य है, इसके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। । । । हृदय से बधाई! कुछ लेखकों ने तो पत्रों का -व्योहार राजेन्द्रसिंह, जबलपुर चो. प.श. अंक १७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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