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________________ जैन पत्र-पत्रिकाएँ-विशेषांक : अभिमत अद्वितीय पड़ा है। डा. नेमीचन्दजी ने विशेषांक का ऐसा विषय चुना जो आज तक अछूता ''तीर्थंकर' के अनेक विशेषांकों में यह था । इसमें बताया गया है कि जैन पत्रअद्वितीय विशेषांक है, जिसमें अत्यन्त पत्रिकाओं का इतिहास १०२ वर्ष का इतिपरिश्रमपूर्वक सन् १८७५ से १९७७ तक हास है । इस लम्बे युग में कितनी पत्र१०२ वर्ष की लगभग ४०० से अधिक पत्रिकाएँ जन्मी, पनपीं, अद्यलौ जीवित हैं जैन-पत्र-पत्रिकाओं का अकारादिक्रम व या अतीत में विलीन हो गयीं - इन सबका कालक्रम से खोजपूर्ण विवरण प्रकाशित समयानुक्रम, नामानुक्रम, भाषानुक्रम, किया गया है । डा. ज्योतिप्रसादजी जैन ने प्रान्तानुक्रम, अवध्यनुक्रम' से विवरण इस 'मेरी पत्रकारिता के पचास वर्ष' तथा श्री अंक में दिया गया है । यह बहुत बड़ी कमी अगरचन्दजी नाहटा ने 'जैन पत्रिकाएँ : थी जिसकी पूर्ति संपादकजी ने बहुत बड़ा पहला पुरहा' में जैन पत्र-पत्रिकाओं और श्रम के साथ की है । अंक में पत्रकारिता के उनके संपादकों, प्रकाशकों आदि के संबन्ध संबन्ध में अनेक विद्वान् पत्रकारों के संस्मरण : में ऐतिहासिक परिचय एवं समीक्षात्मक क्षिात्मक एवं जैन पत्रों के विकास संबन्धी पठनीय विवेचन प्रस्तुत किया है। भाषा की एवं पत्र-संपादकों के लिए मननीय सामग्री दृष्टि से मराठी और गुजराती जैन पत्र 47 दी है । साथ ही श्री रमा जैन की स्मृति पंत्रिकाओं का उदभव, परम्परा और विकास- में उनके संस्मरण आदि भी दिये हैं । अंक कथा तथा अन्य अंग्रेजी, उर्दू, कन्नड़, ६. बड़ा सुन्दर, संग्रहणीय एवं पत्र-संपादकों को तमिल, बंगला, संस्कृत, हिन्दी भाषाओं की पत्रिकाओं की इसमें अवधि एवं राज्या- संपादकजी धन्यवादाह हैं । दिशाबोध करनेवाला है । इसके लिए नसार सारणी है । पुराने विशिष्ट सामाजिक पत्र सनातन जैन, ज्ञानोदय, जैन ... -वीर-वाणी, जयपुर; दिसम्बर, ७७ प्रकाश, जैन मित्र आदि पर स्वतंत्र लेख पठनीय हैं। पं. नाथूरामजी प्रेमी, श्री कापड़ियाजी व पं. परमेष्ठीदासजी की पत्रकारिता- पस्तत विशेषांक के आरम्भ के ६१ संबन्धी सेवाओं का उल्लेख तथा महिला माहला- पृष्ठों में विशिष्ट विद्वानों के पत्र-पत्रिकाओं पत्रकार चन्दाबाईजी की स्मृति में यह अक पर खोजपर्ण लेख हैं जिनमें डा. ज्योतिप्रसाद समर्पित किया गया है । इसी में श्रीमती । । जैन का लेख विशेष रूप से पठनीय है। रमा जैन की जीवन-झांकी, व्यक्तित्व • तत्पश्चात् २० पृष्ठों में जैन पत्र-पत्रिकाओं एवं कृतित्व का परिचय-सामग्री जोड़ कर । र की भावी भूमिका पर एक परिचर्चा दो विशेषांक को अधिक प्रभावशाली बना गयी है। इसके पश्चात विशिष्ट विद्वानों के दिया है । इस विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण विचार दिये गये हैं। तत्पश्चात् ४० पृष्ठों विशेषांक के प्रकाशन हेतु उभय विद्वान् में जैन पत्र-पत्रिकाओं के बारे में परिचयासंपादक-बन्धु धन्यवादाह हैं। त्मक टिप्पणी दी गयी है । रमा जैन की ' -सन्मति-वाणी, इन्दौर; दिसम्बर, ७७ स्मृति में भी सामग्री है । प्रमुख संपादकों के परिचयात्मक लेख हैं। पूरा अंक पठनीय सन्दर्भ ग्रन्थ हैं । साज-सज्जा आधुनिक है । डा. नेमीचन्द - प्रस्तुत विशेषांक एक संदर्भ ग्रन्थ है, जैन की सूझ-बुझ व श्रम सराहनीय है। जिसे तैयार करने में वडा परिश्रम करना -जैनपथ प्रदर्शक, विदिशा; १६ दिस., ७७ चौ. ज. श. अंक १७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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