SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथमल : एक शब्दकथा “चौथ हर पखवाड़े हमारा द्वार खटखटानेवाली एक तिथि है । सामान्य जन इसे 'चोथ' कहता है । ज्योतिष में 'चौथ' को रिक्ता कहा गया है । जैनागमों में चारित्र को रिक्तकर कहा है । इस तरह 'चौथ' और 'चारित्र' निर्जरा और निर्मलता के जीते-जागते प्रतीक हैं । जो कर्ममल को प्रतिफल तिलांजलि देते चले वे थे अन्धविश्वासों के अन्धकार को छिन्न-भिन्न करनेवाले मनस्वी महर्षि चौथमलजी महाराज । मुनि कन्हैयालाल 'कमल' मैंने 'स्व. जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज के दर्शन बृहत्साधु सम्मेलन के अवसर पर अजमेर में किये थे । यद्यपि सीमित शब्दों में उनके असीमित साधुत्व का अंकन संभव नहीं है तथापि जन्मशताब्दि-वर्ष के इस पुनीत प्रसंग पर उस महान् व्यक्तित्व का कुछ पंक्तियों में परिचय लिखना मेरे स्वयं के तथा अन्य मुमुक्षु सुधीजनों के लिए श्रेयस्कर है । १. सर्व साधारण की भाषा में 'चौथ' प्रतिपक्ष आने वाली एक तिथि है । ज्योतिष की भाषा में 'चौथ' रिक्ता तिथि है । जैनागमों में चारित्र को रिक्तकर कहा है । चारित्र की व्युत्पत्ति है - 'चयरित्तकरं चारितं' अर्थात् अनन्तकाल से अर्जित कर्मों के चय, उपचय. संचय को रिक्त (निःशेष) करने वाला अस्तित्व चारित्र है । इस तरह चरित्र को 'चोय' तिथि के नाम से 'मल' अर्थात् धारण करने वाले हुए श्री चौथमलजी महाराज । २. मोक्ष के चार मार्गों में चौथा मार्ग है तप । तप आत्मा के अन्तहीन कर्ममल की निर्जरा करने वाला है - 'भवकोडी संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ' । इस तरह तप की आराधना का सूचक नाम धारण करनेवाले थे स्व. चौथमलजी महाराज । आपने तथा आपके तपोधन अन्तेवासियों ने बाह्याभ्यन्तर तपाराधनापूर्वक मुक्ति की राह का अनुसरण कर अपना नाम चरितार्थ किया । ३. पाँच महाव्रतों में चौथा महाव्रत ब्रह्मचर्य है । यह महान् व्रत ही ब्रह्म ( आत्मा ) को परमब्रह्म (परमात्मा) में उत्थित करनेवाला है । विश्व में यही सर्वोत्तम व्रत है । इसकी आराधना में सभी व्रतों की आराधना सन्निहित है । यह शेष महाव्रतों का कवच है, मूल है'पंचमहव्वय सव्वय मूलं । इस मूल महाव्रत के नाम से अपने नाम को सार्थक करनेवाले थे स्व. श्री जैन दिवाकरजी महाराज । चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only १३ www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy