________________
तो हम २१ प्रतियों के ग्राहक बन जाएँगे फिर भी चार सौ के स्थान पर पाँच सौ बन गये और उक्त सेठ ने प्राय: ४००) रु. न्यौछावर २१ प्रतियों के भेज ही दिये।
जिस समय विज्ञापन छपाकर ग्राहक बनाये गये उस समय कागज का भाव चार आने पौंड था और छपाई भी सस्ती थी, किन्तु यूरोपीय महायुद्ध के कारण जो हिसाब १५ या १६ हजार का बना था वह अब २८-३० हजार का दृष्टिगत होने लगा । यद्यपि पतला लगाकर और छपाई महीन अक्षरों में कराकर पूर्व योजनानुसार छपाई हो सकती थी; यद्यपि प्रकाशक का मंतव्य था कि ऐसा महान् ग्रंथ सदा नहीं छपता, और मोटे अक्षरों के बिना सर्वसाधारण के हित में भी नहीं आ सकता। फिर से ग्राहकों को पत्र लिखे गये कि संस्था उन्हें लागत मूल्य जो आयेगी उस पर ही उन्हें व्ही. पी. छुड़ाना होगी। दस-पाँच ग्राहकों को छोड़ शेष तैयार हो गये । अन्त में प्रथम खण्ड ७५ फार्मों का पचास पौंड वजन के कागज पर ५) रु. के न्यौछावर में प्रकाशित हो गया। इस समय कागज का भाव छह आने पौंड हो गया था, किन्तु निजी प्रेस में छपाई का खर्च कम पड़ा था। तृतीय और चतुर्थ खण्ड में सवा दस आने पौंड का कागज लगा, और वह भी छह-छह आठ-आठ माह बीत जाने पर प्राप्त हो पाता था। प्रथम दो खण्डों का मूल्य १७) रु. और अन्तिम दो खण्डों का मूल्य २३) रु. रखा गया। ___ इतना बड़ा ग्रन्थ हस्तलिखित रूप में ५००) रु. में भी प्राप्त नहीं हो सकता था। ग्रन्थ प्रकाशित हो गये; किन्तु जन्मदायिनी संस्था चिरस्थायी हुई या नहीं, ज्ञात नहीं। अब ये ग्रन्थ केवल मंदिरों में ही उपलब्ध हैं, वे भी कहीं-कहीं।
ग्रंथराज का पुनः प्रकाशन (?)
लेखक को इस ग्रन्थ के दर्शन १९५९ में हुए, इन्दौर के उदासीन आश्रम में पंडित बंशीधरजी के निर्देश पर । धवला ग्रन्थों के गणित की सीढ़ियों के पूर्व 'गोम्मटसार' के मंच पर पहुँचना आवश्यक है। कर्म-विज्ञान का शोधार्थी इन ग्रन्थों के बिना अपंग है । शोधार्थियों को सहज में ग्रन्थ प्राप्य हो सके, लेखक ने योजना बनाकर प्रकाशित की तथा 'ज्ञानपीठ' काशी को एवं स्व. साहु शान्तिप्रसादजी को भी पत्र लिखे। उन्होंने 'गोम्मटेश्वर समिति' को लिखने के लिए सुझाव दिया। वहाँ से कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। लेखक ने 'यूनेस्को' तथा 'इंटरनेशनल मेथामेटिकल यूनियन' को भी इस ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु पहल की , किन्तु सफलता नहीं मिली।
'उषा ऑफसेट प्रिंटर्स, बम्बई' से इन ३८१० पृष्ठों के ग्रन्थ-प्रकाशन के खर्च का आकलन इस प्रकार प्राप्त हुआ है : डबल डेमी १९.५ कि. ग्रा., प्राकृतिक शेड पेपर, दो रंगों का रेशमी कवर; १०० प्रतियाँ
८००००) रु. १००० "
११६०००) रु. ५००० ,
३२४०००) रु.
१६०
तीर्थकर । नव. दिस. १९७७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org