________________
महामंत्री पं. पन्नालाल ने यह आश्वासन पाकर तथा बंगाल में जैनधर्म प्रचार की सदिच्छा से कलकत्ता प्रस्थान किया । उस समय वह विश्व-कोष प्रेस के मालिक श्री नगेन्द्रनाथ बसु के यहां रु. २५ मासिक भाड़े का मकान लेकर संस्था का सामान लाकर पं. गजाधरलाल तथा पं. श्रीलाल के साथ व्यवस्थित हो गये।
पवित्र प्रेस की स्थापना : विरोधियों के आक्रमण और उसके परिहार के मध्य, इन मंत्रियों ने प्रेस की कठिनाइयों से ऊबकर निजी प्रेस खोलने का विचार किया। इसके साथ ही सरेस गलाने का प्रश्न सामने आया। अभी तक ग्रंथ दूसरे के यहाँ छपते थे इसलिए स्पर्श-दोष समझकर ही वे चुप थे, पर अब तो एक अपवित्र वस्तु को बाजार से स्वयं खरीद कर लाने और गलाने तथा काम में लाने तक की नौबत आ गयी थी। ___ आखिर एक घटना ने उन्हें नया रास्ता बतला दिया। सहायक महामंत्री की ऐड़ी में घाव हो गया। उसके लिए विलायती रूई की आवश्यकता हुई । डाक्टर के यहाँ रूई के बंडल में सरेस की कोमलता दृष्टिगत हुई । रूई का एक रूलर बनाया गया और प्रयोग सफल हुआ बिजली से चलने वाली 'अमृत बाजार पत्रिका' की मशीन पर ये रूलें चलने लगीं। इस प्रकार नवीन प्रेस खरीदने की तैयारी हुई। इस समय तक मंत्रियों ने अवैतनिक रूप में ही कार्य किया था। बाद में पं. गजाधरजी ने फार्म के हिसाब से ही काम किया।
गोम्मटसार का प्रकाशन : इस 'सिद्धान्त राज' के छपाने की सम्मति सेठ बालचन्द हीराचन्द, शोलापुर से प्राप्त की गई। छपाने में तकमीना पन्द्रह सोलह हजार बांधा गया और कागजों का रुपया सेठजी ने देना स्वीकार किया। कुछ रुपये ‘अर्थ प्रकाशिका' और 'हरिवंश पुराण' की बिक्री से प्राप्त हुए थे। शेष रुपयों का प्रबन्ध करने के लिए पाँच हजार विज्ञापन पृथक् छपाकर बाँटे गये। अखबारों में आंदोलन किया गया, प्राइवेट पत्रों द्वारा ग्राहक बनने की विनती की गयी और भी भिन्न-भिन्न किस्म के प्रयास किये गये। विरोधियों ने भी अपना कर्त्तव्य-निर्वाह किया और लिखना शुरू किया, “गोम्मटसारजी छपाने की जरूरत नहीं है, रायचन्द्र और शास्त्रमाला में निकल तो गया है, पन्द्रहसोलह हजार रुपया खर्च करना पहाड़ खोद चूहा निकालना है, आदि।” परन्तु विरोधियों का भीतरी अभिप्राय संभवत: यह था कि इस ग्रन्थ के प्रकट होते ही यह संस्था चिरस्थायी हो जाएगी और पण्डितों का सिक्का जैन समाज पर जम जाएगा। ___ सेठ साहब की शर्त थी और वह उचित भी थी कि जब तक चार सौ ग्राहक न बन जाएँ, काम प्रारम्भ न किया जाए। इन तीन मंत्रियों के अध्यवसाय से ६-७ माह के भीतर ही चार सौ ग्राहक बन गये और उनकी सूची शोलापुर भेज दी गयी। विरोधियों का मुँह बन्द हो गया, जो वह रहे थे कि रकम अटक जाएगी और इतने बड़े ग्रन्थ को कोई नहीं खरीदेगा । श्रीलाल जी ने लिखा है कि अहमदाबाद निवासी सेठ माधवालाल भोगीलाल धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्हों ने 'गोम्मटसार' के छपने के समाचार पाते ही संस्था को हर प्रकार से उत्साहित किया। उन्होंने लिखा कि यदि चार सौ ग्राहक पूरे न होंगे
चौ. ज. श. अक
१५९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org