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________________ मोती कुछ सीप, १४. लो कहानी सुनो, १५. जैन जागरण के अग्रदूत, १६. मुग़ल बादशाहों की कहानी खुद उनकी ज़बानी। प्रथम तीन पुस्तकें सन् '३० से पहले दिल्ली से प्रकाशितम हुई थीं जो अब अप्राप्य हैं। 'शेर-ओ-शाइरी' से लेकर 'जैन जागरण के अग्रदूत' तक सभी पुस्तकें 'भारतीय ज्ञान पीठ' काशी से प्रकाशित हुई हैं तथा अप्राप्य हैं।' मुग़ल बादशाहों की कहानी वाली पुस्तक विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से प्रकाशित हुई है । अप्रकाशित पाण्डुलिपियाँ १. शराफ़त नहीं छोडूंगा; २. हैदराबाद दरबार के रहस्य; ३. पाकिस्तान के निर्माताओं की कहानी खद उनकी ज़बानी; ४. उमर खैय्याम की रुबाइयात; ५. बेदाग़ हीरे--विषयवार अशआर (२ भागों में)। उनकी ग्रन्थ-भूमिकाओं के लेखक १. रायबहादुर गौरी शंकर हीराचन्द ओझा -- 'राजपूताने के जैनवीर' २. श्री विशेश्वरनाथ 'रेऊ' - 'मौर्य साम्राज्य के जैन वीर' ३. श्री जैनेन्द्रकुमार - ‘कथा-कहानी और संस्मरण' ('गहरे पानी पैठ' का पूर्व नाम) ४. महापंडित राहुल सांकृत्यायन -- 'शेर-ओ-शाइरी' ५. डा. अमरनाथ झा -- 'शेर-ओ सुख़न (भाग १)' ६. श्री क. ला. मि. प्रभाकर -- जैन जागरण के अग्रदूत' पुरस्कार/सम्मान १. 'शेर-ओ-शाइरी', 'शेर-ओ-सुख़न' तथा 'कुछ मोती कुछ सीप' उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत । २. 'मुग़ल बादशाहों की कहानी खुद उनकी जुबानी' हरियाणा राज्य द्वारा पुरस्कृत । ३. हरियाणा राज्य में उनकी मूक साहित्य-सेवा के लिए चण्डीगढ़ में सार्वजनिक अभिनन्दन (दुशाला ओढ़ाकर एवं ५०० रु. भेंट-स्वरूप देकर) किया। उस स्वागतसमारोह में उन्होंने अपने स्वागत का जवाब देते समय कुछ वाक्यों में यह भी कहा था ‘क्या हमारी नमाज़, क्या हमारे रोजे । बख्श देने के सौ बहाने हैं ।' ४. स्वतंत्रता सेनानी होने से केन्द्रीय सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ताम्रपत्र से सम्मानित किया। पिताजी पत्रों का उत्तर तत्काल देते थे। पत्र की भाषा स्पष्ट, किन्तु सहृदयतापूर्ण होती थी। वे अपनी सीमा-परिधि लिखने में तनिक संकोच नहीं करते चौ. ज. श. अंक १५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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