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________________ क्या लिखा हुआ है ?" तुमने फ़ौरन दन्दान शिकन जवाब दिया-"अमाँ अन्धे हो इतना साफ़ पोस्टर भी नहीं पढ़ा जाता।" जवाब सुनकर मैं खिसियाना-सा खड़ा रह गया। घर आकर गैरत ने तख्ती और उर्दू का कायदा लाने को मजबूर कर दिया।". . . . शाइरी से शौक़ ___ पहाड़ी धीरज (दिल्ली) के जिस महल्ले में रहते थे, वहीं शेरसिंह 'नाज़' रहते थे। उनके साथ पिताजी मशायरों में जाने लगे तथा शाइरी का शौक़ होने लगा। उन दिनों दिल्ली के गली-कूचों में शाइरी का ज़ोर था। वे भी उस रंग में डूबने लगे। 'दास' तखल्लुस (उपनाम) से शाइरी करने लगे । उनकी शाइरी मन्दिरों एवं स्वागत-समारोहों में गायी जाने लगी। उनकी कविताओं का संकलन 'दास-पुष्पांजलि' बहुत पूर्व प्रकाशित हो चुका है (अब अप्राप्य)। उनकी रगों में राष्ट्रीयता और जिन-भक्ति का लहू दौड़ा है। वे जन्मजात कवि थे और उर्दू शाइरी में जीते थे। उनकी नज्म का यह नमूना अपने आप में बेमिसाल है 'मकताँ हैं बेमिसाल हैं और लाजवाब हैं। हुस्ने सिफ़ाते दहर में खुद इन्तख्वाब है। पीरी में भी नमूनमे अहदे शबाब हैं। गोयाके जैन क़ौम के एक आफ़ताब हैं। यह नज्म पिताजी ने बैरिस्टर चम्पतरायजी जैन के लिए २१ फरवरी १९२७ को दिल्ली के स्वागतार्थ जलसे में कही थी। बैरिस्टर साहब के सौन्दर्य एवं दमकते हए व्यक्तित्व को देखते हुए गोयलीयजी की उपमा 'पीरी में भी नमूनमे अहदे शबाब हैं' का जवाब नहीं है। उनका जीवन एक ऐसे तपस्वी और साधक का जीवन रहा है, जिसने जीवन में आये झंझावात को चुपचाप सहा है, ऊसर-बीयाबान माहौल में चुपचाप 'बहुजनहिताय, बहुजन सुखाय' के साहित्य तक में हिन्दी कहानियाँ, अनुभव, संस्मरण एवं उर्दू कविताओं का जल चढ़ाया। पिताजी अपने जीवन की संध्या में भी यही कहते रहे 'अभी मैं कलम ही माँज रहा हूँ।" उनका प्रकाशित साहित्य १. मौर्य साम्राज्य के जैन वीर, २. राजपूताने के जैन वीर, ३. 'दास'पुष्पांजलि, ४. शेर-ओ-शाइरी, ५. शेर-ओ-सुखन (५ भाग), ६. शाइरी के नये दौर (५ भाग), ७. शाइरी के नये मोड़ (५ भाग), ८. नग्मये हरम, ९. उस्तादाना कमाल, १०.हँसो तो फूल झड़ें, ११. गहरे पानी पैठ, १२. जिन खोजा तिन पाइयाँ, १३. कुछ १५० तीर्थकर : नव. दिस. १९७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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