________________
समाज और सिद्धान्त
"सिद्धान्त-हीनता जैसे एक बहुत बड़ा खतरा है और अराजकता है, वैसे ही सिद्धान्त-विपर्यय भी एक भयंकर अभिशाप है । जहर को न समझना भयावह है; किन्तु जहर को अमृत मान लेना तो सीधा विनाश-पथ ही है।
मुनि मोहनलाल 'शार्दूल'
चीन के सुप्रसिद्ध संत कन्फ्यूशियस ने कहा है-'रक्त का विषाक्त हो जाना कोई बात नहीं; किन्तु सिद्धान्त का विषाक्त हो जाना सर्वनाश है।' इसी प्रकार भगवान् महावीर ने एक मर्मोद्धाटन किया है कि 'वे अन्धकार से और गहन अन्धकार में प्रविष्ट होते हैं, जो मन्दबुद्धि हैं और हिंसा में आसक्त हैं। वे मोह (अज्ञान) में डूबे हुए न आर रह पाते हैं, न पार पहुँचते हैं।' वैदिक वाणी है'दुर्बुद्धि ही मनुष्य को भटकाती है और पीड़ित करती है।' सभी बाधाएँ दुर्मतिजनित हैं । सन्मति के समक्ष कोई अड़चन नहीं ठहरती। विपत्तियाँ और विघ्न मढ़ के लिए हैं, विवेकी के लिए नहीं। इन सब बातों से स्पष्ट होता है --सिद्धान्त का समाज के लिए बहुत बड़ा महत्त्व है। मौलिक आधार
हर क्षेत्र में सिद्धान्त एक मौलिक आधार है। सिद्धान्त के बिना किसी भी विषय में व्यवस्थित रूप से कार्य नहीं हो सकता। गणित, विज्ञान, ज्योतिष, काव्य, सनालोमा, धर्म और राज्य आदि सभी के अपने-अपने दर्शन हैं, अपने-अपने सिद्धान्त हैं । सिद्धान्तहीन होने पर किसी का भी कोई स्वरूप नहीं रहता और न उसकी प्रामाणिकता रहती है । प्रामाणिकता विनष्ट हो जाने पर वस्तु ध्वस्त हो जाती है। हर क्षेत्र का स्थायित्व और विकास सिद्धान्त पर निर्भर है। छोटे-मोटे जितने कारखाने हैं, सब अपनी-अपनी व्यवस्था पर चलते हैं। उनकी व्यवस्था भंग हो जाए तो उनकी गति भी बन्द हो जाती है। संसार का 'सर्वस्व' प्राकृतिक और मनुष्य-निर्मित सिद्धान्तों पर टिका है। विज्ञान की इतनी समग्र प्रगति, उसकी सिद्धान्त परिपक्वता में है। एक नियम के द्वारा ही अणुबम जैसी महान् विस्फोटक शक्ति मनुष्य के नियन्त्रण में है। उसका जो प्रकृतिगत विधान है वह न रहे तो वह कभी भी दुनिया को धूल में मिला दे। भ्रान्त सिद्धान्त
सिद्धान्त-हीनता जैसे एक बहुत बड़ा खतरा है और अराजकता है, वैसे ही सिद्धान्त-विपर्यय भी एक भयंकर अभिशाप है। मिथ्या सिद्धान्त सब उलट-फेर कर
चौ. ज. श. अंक
१३१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org