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भगवान् महावीर ने इसका उपाय बताते हुए कहा - 'एक कछुआ है । जब कोई कठिन स्थिति पैदा होती है, पक्षी उसे नोचने आते हैं, सियार आदि उसे खाने आते हैं, जब कोई असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है, भय उत्पन्न होता है, तब तत्काल वह अपनी खोल में चला जाता है । प्रकृति ने उसे ऐसी खोल भी दी है जो उसके लिए ढाल का काम करती है । प्राचीनकाल में जब तलवारों और भालों से युद्ध होता था तब योद्धा अपने हाथों में ढाल रखते थे । वह भी कछुए की खोल से ही बनती थी। कछुआ अपनी खोल के भीतर जाने के बाद सब प्रकार से सुरक्षित बन जाता था। क्या हमारे पास भी ऐसी कोई ढाल है जिसमें पहुँचकर हम पापों से बच सकें? हमारे मन में वासना उभरती है । हमारे ऊपर वासना का आक्रमण होता है, क्रोध का आक्रमण होता है, आवेश का आक्रमण होता है । क्या कोई उपाय है इन आक्रमणों से बचने का ? हाँ, है । भगवान् ने कहा 'जैसे कछुआ बाहरी आक्रमण से बचने के लिए अपनी ढाल में चला जाता है, वैसे ही तुम अध्यात्म में चले जाओ । बच जाओगे सभी आक्रमणों से । अध्यात्म में चले जाओ, चेतना के पास चले जाओ, भीतर चले जाओ, अन्दर प्रवेश कर लो, सुरक्षित हो जाओगे | जब तक मन बाहर भटकता है, तब तक वासनाएँ उभरती हैं, आवेश उभरते हैं। और जो स्थितियाँ चिन्ता, भय और दु:ख उत्पन्न करने वाली हैं वे सारी की सारी उभरती हैं, उभर सकती हैं । तुम भीतर चले जाओ, चेतना के जगत् में चले जाओ, चेतना का नैकट्य प्राप्त कर लो, सुरक्षित हो जाओगे, पूर्ण सुरक्षित । कोई खतरा नहीं, कोई भय नहीं । यह एक ज्वलन्त शक्ति है । इसका अनुभव किया जा सकता है ।
एक बात वह होती है जो माननी पड़ती है और एक बात वह होती है जो माननी नहीं पड़ती; किन्तु जिसकी अनुभूति की जा सकती है । अध्यात्म की बात मानने की बात नहीं है । यह अनुभूति में लाने की बात है। यदि आप चाहें तो आज भी ऐसी स्थिति का निर्माण कर सकते हैं और आज रात को सोने से पहलेपहले उसका अनुभव कर सकते हैं। जैसे ही मन में कोई विचार आया, विकल्प आया, बुरा चिन्तन उभरा, आप तत्काल अपने भीतर चले जाएँ, मन को भीतर ले जाएँ। ऐसा लगेगा कि आप दूसरी दुनिया में पहुँच गये हैं और सारे विचार, सारे विकल्प और सारे चिन्तन बाहर रह गये हैं। अब इनका आक्रमण आप पर नहीं हो सकता । यही है प्रेक्षा ध्यान । इसका अर्थ है अपने आपको देखने लग जाना । जिस क्षण में आप अपने आपको देखने लग जाते हैं, चेतना के क्षेत्र में चले जाते हैं, फिर आप आक्रमण से मुक्त हो जाते हैं। किसी का आक्रमण हो नहीं सकता ।
अध्यात्म के द्वारा हम इनसे बच सकते हैं । हम उसी अध्यात्म की चर्चा कर रहे हैं, जो अध्यात्म हमें इन सारे बाहरी आक्रमणों से बचा सकता है और इन सारे प्रभावों से अप्रभावित रख सकता है । आज हम उस अध्यात्म से थोड़ा दूर
तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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